राजनीति

क्या भाजपा के मुकाबले नहीं टिक रही AAP? उत्तराखंड, गुजरात, गोवा और हिमाचल से संकेत

 गुजरात 

गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 13 फीसदी वोट पाकर राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल कर लिया है। चुनाव नतीजों के बाद मुस्कुराहट के साथ अरविंद केजरीवाल सामने आए और गुजरात की जनता का धन्यवाद दिया कि उनके समर्थन से हमें राष्ट्रीय दल दर्जा मिल गया है। अरविंद केजरीवाल ने अपने संबोधन में एक तरह से गुजरात और हिमाचल के नतीजों को 'आप' के लिए पॉजिटिव साबित करने की कोशिश की। हिमाचल में उनकी पार्टी को 1 फीसदी वोट ही मिला और अधिकतर सीटों पर उनके उम्मीदवारों की जमानत ही जब्त हो गई। यही नहीं गुजरात में भी 128 सीटों पर केजरीवाल के विधायक उम्मीदवार जमानत नहीं बचा सके।

साफ है कि दोनों राज्यों में एक तरह से मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी को खारिज ही किया है। हिमाचल में भाजपा के विकल्प के तौर पर वोटरों ने कांग्रेस को ही मजबूत माना तो वहीं गुजरात में भाजपा के साथ ही डटे रहे। हिमाचल में भी भाजपा का मत प्रतिशत कांगेस के मुकाबले बहुत कम नहीं है। यानी दोनों पार्टियों के बीच 'आप' अप्रासंगिक ही दिखी। फिर भी अरविंद केजरीवाल ने अच्छी तस्वीर ही पेश करने की कोशिश की। हालांकि चुनावी विश्लेषक इन नतीजों को केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए उजली तस्वीर नहीं मानते। इन नतीजों से यह साफ हुआ है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के मतदाताओं को तो लुभा सकती है, लेकिन भाजपा के समर्थक वर्ग में घुसपैठ नहीं कर पा रही।

पंजाब और दिल्ली में भी कांग्रेस को ही किया रिप्लेस

बीते एक दशक के सफर में दिल्ली, पंजाब और नगर निगम के चुनाव में सत्ता हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी के लिए ये नतीजे क्या इस बात के संकेत हैं कि वह भाजपा का राष्ट्रीय स्तर पर अभी विकल्प नहीं हो सकती? इसके पीछे कुछ तर्क भी दिए जा रहे हैं। जैसे आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार को बेदखल कर सत्ता पाई थी। इसी तरह पंजाब में भी उसने कांग्रेस और अकालियों को ही हटाकर सत्ता पाई थी। अब दिल्ली एमसीडी की बात करें तो यहां भले ही भाजपा को पराजय मिली, लेकिन वह 100 सीटें जीत गई। यही नहीं वोट प्रतिशत घटने की बजाय और बढ़ ही गया। आम आदमी पार्टी की जीत की इकलौती वजह यही रही कि 2017 के मुकाबले कांग्रेस का वोट घटा और वह आम आदमी पार्टी के पाले में आ गया। 

गोवा, हिमाचल और उत्तराखंड में नहीं कर सकी कमाल

गोवा, हिमाचल और उत्तराखंड जैसे छोटे राज्यों में भी आम आदमी पार्टी ने पूरी जान लगाई थी, लेकिन बदले में उसे 1 फीसदी के करीब ही वोट मिल सके। साफ है कि जहां भाजपा का शासन रहा है, वहां आम आदमी पार्टी ऐंटी इनकम्बैंसी की वैसी लहर नहीं पैदा कर सकी, जैसा कांग्रेस के खिलाफ कर पाई। इसी तरह आम आदमी पार्टी ने गुजरात के जिन ग्रामीण और शहरी इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया है, वहां परंपरागत रूप से कांग्रेस ही मजबूत रही है। साफ है कि अब तक आम आदमी पार्टी कांग्रेस की कीमत पर ही बढ़ी है। ऐसे में भाजपा के मुकाबले राष्ट्रीय विकल्प बनने के लिए उसे अभी और मेहनत करनी होगी।
 

KhabarBhoomi Desk-1

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