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मां दुर्गा के स्वागत से पहले क्यों मनाया जाता है महालया? जानें इसका महत्व

महालया यानि सर्व पितृ या पितृ विसर्जनी अमावस्या। पितृ पक्ष की ये अमावस्या यूं तो पितरों को विदाई की तिथि है, लेकिन यह मां दुर्गा के आगमन की सूचक भी है क्योंकि पितरों के गमन के साथ ही नवरात्रि में मां दुर्गा का आगमन होता है। ऐसे में महालया अमावस्या को पितरों की विदाई व देवी भगवती के आगमन का संधिकाल माना जाता है, जिसमें पितरों के पूजन व तर्पण का विशेष महत्व है। इस बार यह अमावस्या आज 25 सितंबर को है, जिसके महत्व व मुहूर्त के बारे में आज हम आपको महत्वपूर्ण तथ्य बताने जा रहे हैं।

अज्ञात पितरों की तृप्ति का दिन
महालया या पितृ विसर्जन अमावस्या पितृ पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार इस दिन हम उन सभी पितरों को याद कर उनका श्राद्ध कर्म करते हैं, जिन्हें हम भूल गए या वे अज्ञात हैं।

महालया का मां दुर्गा से जुड़ा महत्व
महालया के दिन दुर्गा मां के आगमन से पहले उनकी मूर्ति को अंतिम और निर्णायक रूप भी इसी दिन दिया जाता है। इसी दिन मां दुर्गा के पंडाल सज जाते हैं औऱ मां की मूर्ति सजती है।

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