देश

सुप्रीम कोर्ट में खास है आज का दिन, देशद्रोह और पूजास्थल कानून पर होगी अहम सुनवाई

 नई दिल्ली 

सुप्रीम कोर्ट में आज का दिन खास होने वाला है। सात महीने पहले शीर्ष न्यायालय ने ब्रिटिश काल के देशद्रोह कानून पर रोक लगा दी थी। अब कोर्ट इस दंडात्मक कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने जा रहा है। बीते साल 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह के लिए दंडात्मक कानून को स्थगित कर दिया था। कोर्ट में केंद्र की तरफ से बताया जा सकता है कि इस कानून को लेकर क्या समीक्षा की गई है और क्या बदलाव किए जा सकते हैं। इसके अलावा धार्मिक स्थलों को लेकर 1991 के कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर भी सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। 

सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा था कि जब तक सरकार का कोई उचित फोरम देशद्रोह के दंडात्मक कानून की पुनर्समीक्षा नहीं कर लेता है, किसी भी राज्य या फिर केंद्र की तरफ से इस कानून के तहत कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कानून को चुनौती देने वाली 12 याचिकाओं पर सुनवाई करने का फैसला किया है। इनमें से एक याचिका एडटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की तरफ से भी फाइल की गई है। 

Related Articles

मौजूदा कानून के तहत धारा 124A के तहत उम्रकैद तक का प्रावधान है। आजादी से लगभग 57 साल पहले 1890 में सरकार के प्रति लोगों में असंतोष को देखते हुए और स्वतंत्रता चाहने वालों का दमन करने केलिए यह कानून लाया गया था। आईपीसी के आने के करीब 30 साल बाद देशद्रोह कानून बनाया गया था। आजादी से पहले इस कानून का इस्तेमाल बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों पर किया गया था। 

बेंच ने कहा था कि धारा 124A की जरूरत मौजूदा सामाजिक ढांचे में नहीं है। इसलिए इसकी समीक्षा जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि इस कानून से अगर कोई व्यक्ति प्रभावित होता है तो वह कोर्ट का रुख कर सकता है। बेंच ने कहा था कि ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार भी कोर्ट के विचारों से सहमत है। यह देखते हुए कहा जा कसकता है कि सरकार इस कानून के प्रावधानों पर पुनर्विचार कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट केंद्र की उस सलाह से असहमत था जिसमें कहा गया था कि एसपी रैंक का पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज करने का निर्णय कर सकता है। 

बता दें कि 2015 से 2020 के बीच देशद्रोह के 356 मुकदमे दर्ज किए गए। इसके अलावा 548 लोगों को गिरफ्तार किया गया। हालांकि 6 साल के दौरान केवल 12 लोगों को ही सजा दी गई। आईपीसी की धारा 124 में प्रावधान है कि कोई व्यक्ति लिखित या मौखिक प्रतीकों के द्वारा, या फिर अपने कार्यो से सरकार के प्रति असंतोष पैदा करने की कोशिश करता है तो  उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई जा सकती है और साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसके अलावा तीन साल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों की सजा दी जा सकती है। 

KhabarBhoomi Desk-1

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button