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भारत ने 22 साल पहले जो सपना देखा था, वो अब पूरा हो गया है। इतने सालों की मेहनत के बाद एयरफोर्स को सोमवार को स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर(LCH) मिल गया है। इस हेलिकॉप्टर के एयरफोर्स में शामिल होने के बाद भारत की ताकत में जबर्दस्त इजाफा हुआ है।
यह हेलिकॉप्टर तपते रेगिस्तान, बर्फीले पहाड़ों समेत हर कंडीशन में दुश्मनों पर हमला करने का माद्दा रखता है। इसकी कैनन से हर मिनट में 750 गोलियां दागी जा सकती हैं, वहीं एंटी टैंक और हवा में मारने वाली मिसाइलें भी फायर की जा सकती है।
खास बात यह है कि नवरात्र में अष्टमी के दिन यह एयरफोर्स के बेड़े में शामिल हुआ। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस LCH को ‘प्रचंड’ नाम दिया है। राजनाथ सिंह ने भी इस हेलिकॉप्टर में उड़ान भरी।
रक्षा मंत्री की उपस्थिति में जोधपुर एयरबेस पर ये हेलिकॉप्टर वायु सेना में शामिल हुए। यहां लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर को एयरफोर्स को सौंपने से पहले धर्मसभा का आयोजन किया गया। इस दौरान चारों समुदाय के धर्म गुरु मौजूद रहे। कार्यक्रम के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रचंड में उड़ान भरी।
राजनाथ ने कहा कि LCH को वायु सेना में शामिल करने के लिए नवरात्र से अच्छा समय और राजस्थान की धरती से अच्छी जगह नहीं हो सकती है। वीरों की धरती से नवरात्र में इसकी शुरुआत हुई। LCH के शामिल होने से वायुसेना की शक्ति बढ़ेगी। देश की स्वदेशी तकनीक पर गर्व है। भारत का विजय रथ तैयार है। LCH सारी चुनौतियों पर खरा उतरा है। दुश्मनों को आसानी से चकमा दे सकता है।
कार्यक्रम के दौरान राजनाथ सिंह ने एलसीएच को विजय रथ बताते हुए कहा कि आने वाले समय में सुपर पावर वाले देशों में भारत का नाम सबसे पहला होगा। इसके नाम के साथ लाइट जुड़ा है, लेकिन काम भारी है।
करीब 3885 करोड़ रुपए की लागत से बने 15 एलसीएच सेना में शामिल होने हैं, इसमें से 10 आज वायु सेना को मिल गए। इस स्क्वाड्रन के लिए एयरफोर्स के 15 पायलट्स को ट्रेनिंग दी गई है।
लेकिन, इंडियन एयरफोर्स के लिए यह सब कुछ इतना आसान नहीं था…इन 22 साल में 10 से ज्यादा बार ट्रायल हुए। सियाचिन से लेकर रेगिस्तानी इलाके तक के माहौल में इसे परखा गया और अब इसकी पहली स्क्वाड्रन मिल गई है।
कारगिल में महसूस हुई थी कमी
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान सेना को अधिक ऊंचाई वाले स्थान पर हमला करने वाले हेलिकॉप्टरों की बहुत कमी महसूस हुई थी। यदि उस दौर में ऐसे हेलिकॉप्टर होते तो सेना पहाड़ों की चोटी पर बैठी पाक सेना के बंकरों को उड़ा सकती थी।
इस कमी को दूर करने का बीड़ा उठाया एक्सपट्र्स ने और हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड (HAL) परिसर में इसका निर्माण करने की चुनौती ली। सेना व एयरफोर्स की आवश्यकताओं के अनुरूप डिजाइन तैयार की गई और इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया।