मध्यप्रदेश

मल्लखंभ से खेलों की संस्कृति को आगे बढ़ा रहा है खेलो इंडिया गेम्स

भोपाल

खेलों की पंरपरा भारत में सदियों पुरानी रही है। इसी परंपरा को साक्षात दिखाता है मल्लखंभ का खेल। एक सीधे खड़े खंभे पर जिमनास्टिक के अंदाज में अद्भुत रूप से खिलाड़ी अपनी कला का प्रदर्शन कर इस खेल में जान डालते हैं। इसे मौजूदा समय में खंभे और रस्सी के जरिए किया जाता है। इस देसी खेल ने ओलंपिक में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।

योद्धाओं का खेल

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मल्ल शब्द का अर्थ होता है कुश्ती और खंभ शब्द खंभा शब्द का ही एक रूप है। माना जाता है कि पुराने समय में योद्धा और पहलवान इसे लड़ाई या मुकाबले से पहले प्रशिक्षण के रूप में करते थे। मल्लखंभ के जरिए इंसान के शरीर का लचीलापन बढ़ता है और साथ ही मांसपेशियाँ भी मजबूत होती हैं। यह खेल खिलाड़ी को एकाग्र रहना भी सिखाता है। इसमें बेलेंस बनाना काफी जरूरी होता है।

देश में पहली शताब्दी के समय के कुछ अवशेषों में मल्लखंभ जैसे खेल का उल्लेख मिलता है। पुराने शासकों की कई पेंटिंग हैं जिनमें कुछ लोग एक्रोबेटिक्स करते दिखते हैं और मल्लखंभ भी इन चित्रों का हिस्सा है।

खेल का रूप

मल्लखंभ का खेल मौजूदा समय में तीन वर्ग में खेला जाता है – पोल, हेंगिंग (लटकने वाला), रस्सी से। पोल मल्लखंभ में शीशम की लकड़ी से बना खंभा एक जगह पर खड़ा किया जाता है। इस खंभे पर तेल लगाया जाता है जिससे खिलाड़ी की अच्छी पकड़ और नियंत्रण को सही से जाँचा जा सके। दूसरे प्रकार के मल्लखंभ में एक खंभ को चेन के सहारे लटकाया जाता है और इस पर खिलाड़ी अपनी कलाबाजी दिखाते हैं। रस्सी के मल्लखंभ में लटकती रस्सी को पकड़ कर खिलाड़ी अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।

देश में अधिकतर प्रतियोगिताओं में पोल मल्लखंभ और रस्सी पर होने वाला मल्लखंभ ही देखने को मिलता है। जज खिलाड़ियों को 5 अलग-अलग श्रेणियों – माउंटिंग, एक्रोबेटिक्स, कैच, बेलेंस और डिस्‍माउंट पर अंक देते हैं और सर्वाधिक अंक वाला प्रतिभागी विजयी होता है।

देश में मल्लखंभ

साल 1936 में बर्लिन ओलिंपिक के लिए अमरावती से एक विशेष टीम ‘व्यायाम प्रसारक मंडल’ जर्मनी गई। यहाँ अलग-अलग देशों से टीमें अपने देश के खेलों को दुनिया के सामने दिखाने के लिए बुलाई गई थी। यह ओलिंपिक की स्पर्धा नहीं थी, लेकिन इसके जरिए लोगों में खेलों के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश की गई थी। भारत का दल प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर रहा और तब एडोल्फ हिटलर ने भारतीय दल को उनका पुरस्कार दिया था। इस अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के बाद से ही मल्लखंभ का स्तर देश में और ऊँचा उठ गया।

भारत में मल्लखंभ के विकास के लिए एक फेडरेशन वर्ष 1981 में बनाई गई थी। इसी साल इस खेल के नियम तैयार कर इन्हीं के आधार पर देश में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता मल्लखंभ के लिए की गई। हालांकि वर्ष 1958 में हुई राष्ट्रीय जिमनास्टिक चेंपियनशिप में भी मल्लखंभ को शामिल किया गया था।

पिछले कुछ समय में मल्लखंभ को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाने के इरादे से बड़े-बड़े मंचों पर शामिल किया जा रहा है। नेशनल गेम्स में भी मल्लखंभ को हिस्सा बनाया गया है। वर्ष 2021 में 20 वर्षीय हिमानी परब को इस खेल में बेहतरीन योगदान के लिए अर्जुन अवॉर्ड दिया गया। दिसंबर 2022 में सागर ओव्हाल्कर को मल्लखंभ के खेल के लिए प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अब खेलो इंडिया यूथ गेम्स में भी मल्लखंभ के जरिए खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने और पारंपरिक खेलों के लिए जन-मानस की रुचि बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।

 

KhabarBhoomi Desk-1

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