राजनीति

कर्नाटक के लिए भाजपा का नया प्लान, देवगौड़ा की जाति पर ध्यान; कांग्रेस भी कमजोर नहीं

 कर्नाटक

भाजपा के मिशन 2024 में दक्षिण का सारा दारोमदार कर्नाटक पर टिका है, जहां न केवल उसकी एकमात्र सरकार है, बल्कि राज्य की 28 में से 25 लोकसभा सीटें उसके पास हैं। राज्य में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव इसलिए भी उसके लिए महत्वपूर्ण हैं। पार्टी ने सत्ता बरकरार रखने के लिए सामाजिक समीकरणों को साधना शुरू कर दिया है। उसकी नजर राज्य के दोनों प्रभावी माने जाने वाले लिंगायत व वोक्कालिगा समुदाय पर है, जो राज्य की आबादी में 34 फीसदी के करीब हैं और आधी सीटों को प्रभावित करते हैं। राजनीतिक रूप से कर्नाटक (224 विधानसभा सीटें व 28 लोकसभा सीटें ) छह क्षेत्रों बेंगलुरु, मध्य कर्नाटक, हैदराबाद कर्नाटक, तटीय कर्नाटक, बांबे कर्नाटक व पुराना मैसूर कर्नाटक में बंटा हुआ है। इनमें भाजपा का सबसे कमजोर क्षेत्र पुराना मैसूर है। यहां की 64 विधानसभा सीटों में से भाजपा के पास 13 सीटें हैं, जिनमें से 11 दूसरे दलों से टूटकर आए विधायक हैं। वोक्कालिगा प्रभाव वाला यह क्षेत्र जद (एस) का गढ़ माना जाता है, उसे यहां पर सबसे ज्यादा 23 सीटें मिली थीं। राज्य के सबसे बड़े वोक्कालिगा नेता माने जाने वाले पूर्व प्रधानमत्री एचडी देवगौड़ा का प्रभाव भी यहीं पर सबसे ज्यादा है।

भाजपा के लिए जरूरी है जद (एस) से दूरी
भाजपा की रणनीति में वोक्कालिगा समुदाय सबसे ऊपर है, जिसका उसे सबसे कम समर्थन मिला है। यही वजह है कि उसने बीते वर्षों में दूसरे दलों खासकर कांग्रेस के प्रमुख वोक्कालिगा नेताओं को अपने साथ जोड़ा है। अभी राज्य सरकार के सात मंत्री इसी समुदाय से हैं। केंद्र में भी इस समुदाय से एक मंत्री है। भाजपा को एक दिक्कत यह भी आ रही है कि जद (एस) यह संकेत भी देती है कि चुनाव बाद वह भाजपा के साथ भी जा सकती है। ऐसे में भाजपा के बड़े नेता लागातार यह बयान दे रहे हैं कि जद (एस) के साथ किसी तरह का समझौता नहीं होगा।

सामाजिक समीकरणों में उलझा गणित
राज्य के सामाजिक समीकरणों में लिंगायत लगभग 18 फीसदी, वोक्कालिगा 16 फीसदी, दलित करीब 23 फीसदी, आदिवासी सात फीसदी और मुस्लिम करीब 12 फीसदी हैं। तीन से चार फीसद कुर्वा हैं। राजनीतिक दलों की रणनीति इन समीकरणों के आसपास घूमती रहती है। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दुरप्पा व मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के चलते लिंगायत समुदाय का समर्थन इस बार भी भाजपा के साथ रह सकता है। भाजपा की कमजोर कड़ी माने जाने वाला वोक्कालिगा समीकरण में दिक्कत यह है कि कांग्रेस के पास कई वोक्कालिगा नेता है। इनमें डीके शिवकुमार प्रमुख हैं, जो मुख्यमंत्री पद के एक दावेदार भी हैं। ऐसे में वोक्कालिगा में सेंध लगाना भाजपा की रणनीति के लिए अहम है। कांग्रेस नेता सिद्धरमैया के चलते अधिकांश कुर्वा समर्थन कांग्रेस को जा सकता है।

विपक्ष भी कमजोर नहीं
विपक्ष की रणनीति भी दलित आदिवासी, मुस्लिम व कुर्वा पर टिकी है, जिनकी आबादी करीब 45 फीसदी है। यही वजह है कि भाजपा सरकार ने दलित व आदिवासी को साधने के लिए आरक्षण में बढ़ोतरी की है। अनुसूचित जाति के लिए 15 से बढ़ाकर 17 फीसदी व अनुसूचित जनजाति के लिए तीन से बढ़ाकर सात फीसदी आरक्षण किया गया है। इन समीकरणों के साथ माहौल भी बेहद अहम है। सरकार को लेकर सत्ता विरोधी माहौल व पार्टी के अंदरुनी समीकरण भी चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं।
 

KhabarBhoomi Desk-1

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