मध्यप्रदेश

जी-20 के अंतर्गत थिंक-20 में पहले दिन हुए 10 पेरेलल सेशन

विभिन्न विषय-विशेषज्ञों ने दिये महत्वपूर्ण सुझाव
सम-सामयिक मुद्दों, चुनौतियों और आर्थिकी पर हुआ गहन विचार-मंथन

भोपाल

भोपाल में जी-20 के अंतर्गत थिंक-20 की दो दिनी बैठक के पहले दिन 10 पेरेलल सेशन सम्पन्न हुए। इन सेशन में जी-20 देशों, विशेष अतिथि देशों के मंत्रीगण, विषय-विशेषज्ञों और विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों के बीच विभिन्न सम-सामयिक मुद्दों, चुनौतियों और आर्थिकी पर गहन विचार-मंथन हुआ।

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सत्र में इन्स्टीट्यूट फॉर एप्लायड इकोनॉमिक रिसर्च ब्राजील के रिसर्चर डॉ. फेबियो वेरास सोअरेस ने कहा कि संतुलित जीवन की नीति को ध्यान में रखते हुए जीवन-शैली अपनाएँ। प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ ही सामाजिक सुरक्षा को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

एसोसिएट प्रोफेसर आरआईएस नई दिल्ली डॉ. सभ्यसाची साहा ने कहा कि वैश्विक आम सहमति के लिये वित्त और प्रौद्योगिकी को साझा किया जा सकता है। जीवन और प्रौद्योगिकी के प्रति वैकल्पिक दृष्टिकोण की निगरानी की जानी चाहिए। यह ग्लोबल गवर्नेंस चैलेंज है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण लोगों की जीवन-शैली और स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। प्रोफेसर ऑफ मेनेजमेंट परड्यू यूनिवर्सिटी यूएसए डॉ. आलोक चतुर्वेदी ने कहा कि थर्मोडायनेमिक्स के मौलिक नियमों को जीवन-शैली से भी जोड़ा जा सकता है। अर्थ-व्यवस्था को प्रकृति के अनुरूप विकसित करें और इसे हर व्यक्ति के लिये सुलभ बनाएँ। ऐसा माहौल बनायें, जो सेहत और जीवन-शैली की समग्र स्थिरता को संतुलित करता हो। एग्जीक्युटिव डायरेक्टर समर्थन भोपाल डॉ. योगेश कुमार ने कहा कि कार्यवाही के प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए। स्थानीय संसाधन विकसित किये जाने चाहिए। डायरेक्टर इन्स्टीट्यूट ऑफ पब्लिक इन्टरप्राइजेस हैदराबाद प्रो. रामकुमार मिश्रा ने कहा कि जीवन-शैली में सुधार के लिये प्राचीन साहित्य की ओर लौटें। बेहतर जीवन-शैली के लिये नैतिक मूल्यों को सबसे ऊपर रखें।

प्रौद्योगिकी में नैतिकता

सत्र की अध्यक्षता करते हुए साइंस डिप्लोमेसी फेलो आरआईएस डॉ. भास्कर बालाकृष्णन ने कहा कि प्रौद्योगिकी अपने आप में व्यवहारिक दृष्टिकोण है। विश्व स्तर पर प्लासटिक अपशिष्ट प्रबंधन एक चुनौती है। प्रौद्योगिकी की नैतिकता में मुद्दों और चुनौतियों के आधार पर वित्त पोषण को प्राथमिकता दी जाएगी। डायरेक्टर एसटीईपीआरआई घाना डॉ. जॉर्ज इसेग्बे ने कहा कि स्वस्थ देख-भाल के लिये प्रौद्योगिकी का नैतिक रूप से उपयोग किया जाना चाहिए। एसडीजी लक्ष्यों के लिये तकनीक आधारित नैतिकता की पहचान करना जरूरी है।

डायरेक्टर सेंटर फॉर प्रोफेशनल एथिक्स यू.के., प्रो. डोरिस स्रोडल ने कहा कि प्रौद्योगिकी का अनुचित प्रयोग प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। उन्होंने सौर ऊर्जा उपयोग और गोपनीयता के मुद्दे पर भी प्रकाश डाला।

पूर्व डिप्टी डायरेक्टर जनरल आईसीएमआर त्रिवेन्द्रम डॉ. नंदिनी के. कुमार ने कहा कि प्रौद्योगिकी के माध्यम से स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान ढूंढना होगा। प्राचीन तकनीक और औषधियों के उपयोग से सुधार किया जा सकता है। डिपार्टमेंट ऑफ ह्यूमेनेटीज एण्ड सोशल साइंसेस आईआईटी रुड़की के प्रो. डी.के. नौरियाल ने कहा कि प्रौद्योगिकी और नैतिकता के लिये कोई वैश्विक ढाँचा नहीं है। एंड्रॉइड तकनीक से गूगल की तरह प्रौद्योगिकी आधारित एकाधिकार को खत्म किया जाएगा।

 ‘इन्वेस्टिंग इन चिल्ड्रन : इन्वेस्टमेंट इन फ्यूचर’

सत्र की अध्यक्षता करते हुए एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर सेंटर फॉर पॉलिसी डायलॉग बांग्लादेश डॉ. फेहमिदा खातून ने कहा कि बच्चों में निवेश उपेक्षित क्षेत्रों में से एक है। उन्होंने कहा कि बच्चों में निवेश वास्तव में भविष्य में निवेश है। वाइस चेयरमेन इंस्टीट्यूट ऑफ डेव्हलपमेंट स्टडीज जयपुर प्रो. पिनाकी चक्रवर्ती ने कहा कि कोविड के बाद की दुनिया में अनिश्चित अर्थ-व्यवस्था के संदर्भ में बच्चों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। निवेश को परिणामों से जोड़ा जाना चाहिये। रीजनल एडवाइजर फॉर सोशल पॉलिसी यूनिसेफ सुजेसिका ओन्स ने कहा कि बच्चों में चिंता के मामलों में वृद्धि हुई है। बच्चों के लिये निवेश से संबंधित सोच विकसित करना समय की माँग है। एडवाइजर व्ही.व्ही. गिरी नेशनल लेबर इंस्टीट्यूट नोएडा श्रीमती प्रग्ना परांडे ने कहा कि माता-पिता, समाज और राज्य निवेशक हैं और बच्चे निवेशकर्ता हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी केवल माँ की ही नहीं है। चीफ सोशल एण्ड इकॉनामिक पॉलिसी एनालिसिस यूनिसेफ इटली डोमनिक रिचर्डसन ने कहा कि बाल विकास योजना सामाजिक विकास नहीं हो सकता। सीनियर एसोसिएट डेव्हलपमेंट पाथवेज यू.के. सुएलेक्जेन्ड्रा बारटेंज ने कहा कि बच्चों के लिये मानवाधिकारों पर विचार होना चाहिये। सामाजिक सुरक्षा के लिये विकास के नये मॉडल की आवश्यकता है। डॉ. डेविड ने कहा कि छोटे बच्चों पर ध्यान देना चाहिये।

वूमेन एण्ड यूथ लेड डेव्हलपमेंट

सत्र की अध्यक्षता करते हुए नेशनल को-ऑर्डिनेटर सेल्फ एम्पलाईड वूमेंस एसोसिएशन इण्डिया सुरेनाना झाबवाला ने महिला और युवा नेतृत्व विकास के विषय में जानकारी दी। रिसर्च फैलो यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड डॉ. लौरा बेसविच ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के लिये वित्त पोषण पर ध्यान केन्द्रित किया जायेगा। सेंटर फॉर वूमेंस स्टडीज एण्ड डेव्हलपमेंट पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ डॉ. पाम राजपूत ने कहा कि महिलाएँ न केवल नौकरी चाहने वाली हैं, बल्कि वह नौकरी देने वाली भी हैं। एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर एट नेशनल केम्पेन फॉर सस्टेनेबल डेव्हलपमेंट नेपाल दया सागर श्रेष्ठ ने कहा कि युवाओं के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच जरूरी है। युवाओं की शासन और विकास प्रक्रिया में सार्थक भागीदारी होनी चाहिये। असिस्टेंट प्रोफेसर डिपार्टमेंट ऑफ वीमेंस स्टडीज गोहाटी यूनिवर्सिटी डॉ. पॉली वेक्यूलीन ने कहा कि महिला सशक्तिकरण केवल आर्थिक सशक्तिकरण नहीं, बल्कि सामाजिक सशक्तिकरण भी है। विकास के पूरे ढाँचे को नये सिरे से तैयार करने की जरूरत है। असिस्टेंट प्रोफेसर आरआईएस नई दिल्ली डॉ. वीना पांडे ने कहा कि वर्तमान में जी-20 देशों में 40 प्रतिशत से कम महिलाओं की बैंक खाते तक पहुँच है।

फायनेंसिंग रेजिलिएंट सिटीज एण्ड सोसायटीज

डायरेक्टर डेव्हलपमेंट इकानॉमिक्स एण्ड इंडीकेटर डिवीजन एडीबी नई दिल्ली डॉ. राना हसन ने कहा कि शहर पूँजी आर्थिक विकास इंजन की भूमिका नहीं निभा रहे हैं। शहरों को अपने संसाधन बढ़ाने होंगे। प्रोफेसर एनआईयूए नई दिल्ली डॉ. देवोलिना कुंडू ने कहा कि छोटे और मझौले शहरों में पूल फायनेंसिंग जैसे उपकरणों के जरिये निवेश बढ़ाया जाना चाहिये। डायरेक्टर सिम्बायोसिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक पुणे डॉ. ज्योति चंदीरमानी ने कहा कि हमारे शहर भविष्य के लिये योजनाएँ बनाते समय पिछले डेटा का उपयोग करते हैं, इसे बदलने की जरूरत है। साउथ एशियन इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस रिसर्च एण्ड डेव्हलपमेंट डॉ. विश्वजीत राय चौधरी ने कहा कि संसाधनों का उपयोग संसाधन जुटाने के साथ किया जाना चाहिये। पॉलिसी स्पेशलिस्ट क्लाइमेट रिस्क यूएनडीपी यूएसए राजीव इस्सर ने कहा कि ग्लोबल अर्बन रेजिलिएंस फण्ड का निर्माण भारतीय जी-20 प्रेसीडेंसी के माध्यम से किया जा सकता है।

‘ग्रीन एनर्जी एण्ड लॉजिस्टिक्स’

लॉजिस्टिक स्पेशलिस्ट कंसल्टेंट एडीबी नई दिल्ली प्रीतम बैनर्जी ने दस्तावेजों के सुरक्षित डिजिटल परिवर्तन के बारे में बताया। एसोसिएट प्रोफेसर आरआईएस नई दिल्ली प्रियदर्शी दास ने कहा कि स्व वित्त पोषण के मुद्दों पर वित्तीय निवेशकों को प्रोत्साहित करना होगा। वरिष्ठ सलाहकार विकास सहयोग निदेशालय ओईसीडी पेरिस डॉ. राल्फ स्वार्ज ने कहा कि मानसिकता और जलवायु परिवर्तन भविष्य की पीढ़ी से संबंधित हैं। एसोसिएट प्रोफेसर स्कूल ऑफ एनर्जी साइंसेस एण्ड इंजीनियरिंग आईआईटी गोहाटी ने कहा कि ईको टूरिज्म मॉडल भारत में मौजूद है। इसे और आगे ले जाने की जरूरत है।

‘इकोनॉमिक सिस्टम ट्रांसफार्मेशन’

प्रोफेसर डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक्स यूनिवर्सिटी ऑफ ढाका बांग्लादेश डॉ. सेलिम रेहान ने कहा कि मानव पूँजी और कौशल में गंभीर जरूरतों का अभाव है। परिवर्तनों को हरित और टिकाऊ होना चाहिये। हीरल सवेटियन और जार्ज मुरेला ने आर्थिक प्रणालियों और विकास के मुद्दों पर प्रकाश डाला। फार्मर डायरेक्टर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स डीएवी इंदौर डॉ. कावड़िया ने कहा कि एसडीजी में बदलाव की जरूरत है। व्यापार खुलेपन में विकसित देश 53 से घटकर 39 हो गये हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशन पोंटीफिकल कैथोलिक यूनिवर्सिटी ब्राजील के प्रो. पाउलो स्टीब्स ने कहा कि वैश्विक सार्वजनिक सामान हमारे एजेंडे से दूर हो गये हैं। क्वांटीटेटिव इकोनॉमिस्ट साउथ अफ्रीका लुकोवी सेके ने औद्योगिक क्रांति तत्वों के प्रमुख चक्रों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। ‘इण्डस्ट्रियल ट्रांसफार्मेशन’ सत्र में भी विभिन्न विषय-विशेषज्ञों ने महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डाला।

‘वन हेल्थ, वेलनेस एण्ड ट्रेडिशनल मेडिसिन’

प्रेसीडेंट एनआईपीओ कोचि प्रो. टी.सी. जेम्स ने कहा कि यह सत्र केवल अकादमिक चर्चा नहीं है, बल्कि जी-20 देशों के भविष्य के लिये मार्ग तैयार करेगा। जी-20 और टी-20 एजेंडे के लिये एन्टी माइक्रोवियल प्रतिरोध एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। रिसर्चर ग्लोबल हेल्थ पॉलिसी एण्ड बॉयोइथिक्स भोपाल डॉ. अनंत भान ने कहा कि डेटा साझा करने और पारदर्शिता के लिये सहकारी तंत्र की जरूरत है। अधिक मानव पशु सम्पर्क से जिनेटिक रोग बढ़ रहे हैं। सीएसआईआर-आईजीआईबी नई दिल्ली की डॉ. भावना पराशर ने कहा कि चिकित्सा के एकीकरण के लिये यूनिफाइड ढाँचे की आवश्यकता है। आयुर्वेद की चिकित्सा में होमो स्टेटिक अवधारण क्षमता है। असिस्टेंट डायरेक्टर मेघालय एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट शिलांग सुइबरीन वरजरी ने कहा कि दवा के लिये संरक्षित पौधों के केचमेंट क्षेत्रों को विकसित करने की जरूरत है। उपाध्यक्ष पीएफएचआई इण्डिया डॉ. प्रीति कुमार ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दों के समाधान के लिये सामाजिक निर्धारक महत्वपूर्ण हैं। एक स्वास्थ्य अवधारणा में भारत अग्रणी है। प्रिंसिपल गवर्मेंट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज भोपाल डॉ. उमेश शुक्ला ने कहा कि प्रकृति की भूमिका रोगों की रोकथाम और उपचार में महत्वपूर्ण है।

‘गोइंग बियांड जीडीपी : वेलबीइंग मेजरमेंट’

सत्र की अध्यक्षता करते हुए सदस्य कोर टीम जीडीकेपी इण्डिया आशीष कुमार ने कहा कि जीडीपी से ज्यादा जरूरी वेलबीइंग मेजरमेंट है। सत्र को डिप्टी डायरेक्टर ओईसीडी डेव्हलपमेंट सेंटर पेरिस फेड्रिको बोनांगलिया, विजिटिंग प्रोफेसर एण्ड सीनियर एडवाइजर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस मुम्बई प्रो. के. सीता प्रभु, फार्मर प्रोफेसर इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेव्हलपमेंट रिसर्च मुम्बई प्रो. एम.एच. सूर्यनारायणा, प्रोफेसर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स डीएवी इंदौर डॉ. कन्हैया आहूजा और फार्मर प्रोफेसर ऑफ सोशियोलॉजी यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद डॉ. ई. हरिबाबू ने भी महत्वपूर्ण सुझाव दिये।

KhabarBhoomi Desk-1

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