
शुभम पांडेय, नई दिल्ली। भारतीय बैडमिंटन के इतिहास में साल 2001 एक सुनहरा पल लेकर आया, जब पुलेला गोपीचंद ने आल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप जीती। उसी समय हैदराबाद में घर में बैठी एक लड़की ने मन में बैडमिंटन खेलने की ऐसी ठानी कि उसने पूरी दुनिया को अपने जलवे से रूबरू करा दिया।
हम बात कर रहे हैं पुसारला वेंकटा सिंधू यानी पीवी सिंधू की, जो रियो ओलंपिक में स्पेन की कैरोलिना मारिन से हारकर स्वर्ण पदक जीतने से एक कदम पीछे रह गईं। इसके बावजूद भारत को बैडमिंटन में सिंगल्स स्पर्धा का ओलंपिक रजत पदक जिताने वाली वह पहली खिलाड़ी बनीं। सिंधू हाथ में रैकेट लेकर ओलंपिक पदक की करोड़ों भारतीय प्रशंसकों की उम्मीदों को पूरा करने के लिए एक बार फिर तैयार हैं।
खुलकर खेलने देना होगा
मारिन के टोक्यो ओलंपिक से हटने के बाद क्या सिंधू स्वर्ण पदक की दावेदार हैं, जब भारत के पहले एशियाई चैंपियन (1965) और पूर्व खिलाड़ी दिनेश खन्ना से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने दैनिक जागरण को बताया कि अगर हम सिंधू को उम्मीदों के बोझ से हल्का रखेंगे तो वह ऐसा जरूर कर सकती हैं।
दिनेश ने कहा, ‘रियो की तरह ही हमें इस बार भी उनसे कम उम्मीदें रखनी चाहिए, क्योंकि जब वह रियो में खेलने गई थीं तो उस वक्त किसी ने नहीं सोचा था कि वह पदक जीतेंगी। लेकिन, उन्होंने फाइनल में जगह बनाई और रजत पदक जीता। इसी तरह हमें इस बार भी उन्हें ओलंपिक में खुलकर खेलने देना चाहिए।’
फिटेनस पर करना होगा काम :
रियो ओलंपिक के बाद सिंधू को कई टूर्नामेंट के फाइनल में हार का सामना पड़ा, जिससे उबरते हुए उन्होंने 2019 में बीडब्ल्यूएफ बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप जीतकर इतिहास रच दिया। ऐसा करने वाली भी वह पहली भारतीय महिला बन गईं। हालांकि, इस जीत के बाद वह कुछ कमाल नहीं कर सकीं और फिर कोरोना के चलते सब कुछ बंद हो गया।
दिनेश ने सिंधू के प्रदर्शन को आंकते हुए कहा, ‘रियो में सिंधू ने एक नया शाट सभी को दिखाया था। वह यह कि बैकहैंड में कोर्ट के पीछे से जाकर वह क्रास रिटर्न करती थीं। इस शाट ने सबका मन मोह लिया था। उसके बाद 2019 का खिताब जीतकर सिंधू ने आपनी दावेदारी मजबूत की और फाइनल में हारने के सूखे को खत्म किया। लेकिन, इस प्रतियोगिता के बाद उनके लिए फिटनेस एक समस्या बन गई। उम्मीद करता हूं कि सिंधू अपनी फिटनेस पर काम करेंगी और टोक्यो में भी आक्रामकता के साथ नया अंदाज लेकर आएंगी।’
इनसे मिलेगी चुनौती :
मारिन की गैरमौजूदगी में सिंधू को किससे चुनौती मिल सकती है, इस बारे में दिनेश ने कहा, ‘शीर्ष-10 में नोजुमी ओकुहारा, ताई त्ज़ु यिंग, अकाने यामागुची और रत्चानोक इंतानोन जैसी खिलाड़ी किसी भी दिन किसी को हरा सकती हैं। इन सभी के खेल में काफी सामानता है। सिंधू के लिए चीनी शटलर सबसे बड़ी चुनौती बन सकती हैं, क्योंकि उनका खेल किसी ने देखा नहीं है और कोरोना के चलते वह खेली भी नहीं हैं। ऐसे में उसके लिए सिंधू को तैयार रहना होगा।’
आठ साल की उम्र में ही थाम लिया था रैकेट :
सोमवार को 25 साल की हुई सिंधू ने आठ साल की उम्र से ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था। उन्होंने महबूब अली की देखरेख में बैडमिंटन की बेसिक ट्रेनिंग सिकंदराबाद के रेलवे इंस्टीट्यूट आफ सिग्नल इंजीनियरिंग ग्राउंड से शुरू की थी। इसके बाद सिंधू ने पुलेला गोपीचंद की हैदराबाद स्थित गोपीचंद अकादमी में ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया था। इन दिनों वह हैदराबाद में ही गाचिबाउली स्टेडियम में अभ्यास कर रही हैं।
सिंधू की उपलब्धियां
ओलंपिक : रजत पदक (2016)
विश्व चैंपियनशिप : स्वर्ण पदक (2019), रजत पदक (2017 व 2018), कांस्य पदक (2013 व 2014)
एशियाई खेल : रजत पदक (2018)
राष्ट्रमंडल खेल : रजत पदक (2018), कांस्य पदक (2014)
एशियाई चैंपियनशिप : कांस्य पदक (2014)