
हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष 2026 का नववर्ष 19 मार्च से शुरू होगा। यह वर्ष विक्रम संवत 2083 के रूप में मनाया जाएगा और इसे ज्योतिषीय मान्यताओं के आधार पर रौद्र संवत्सर कहा जा रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार यह साल कई दृष्टियों से चुनौतीपूर्ण और उथल-पुथल से भरा हो सकता है।
वैश्विक स्तर पर संभावित प्रभाव
ज्योतिषीय भविष्यवाणियों के मुताबिक, रौद्र संवत्सर में दुनिया भर में गंभीर परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। संभावित घटनाओं में शामिल हैं:
मौसम में बड़े बदलाव
ज्वालामुखी विस्फोट
युद्ध या हिंसा की स्थिति
शक्तिशाली भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं
ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार ग्रहों की स्थिति इन घटनाओं को प्रभावित कर सकती है।
ग्रह स्थिति और उनके प्रभाव
2026 के नववर्ष में गुरु (बृहस्पति) वर्ष का राजा ग्रह होगा। हालांकि उनकी अतिचारी अवस्था अशांति और असंतुलन बढ़ा सकती है।
मंगल, जो 2025 के मंत्री ग्रह हैं, क्रूर ग्रहों के साथ योग बनाते हुए विध्वंसकारी प्रभाव दे सकते हैं।
शनि, गुरु की राशि मीन में गोचर कर रहे हैं, जिससे प्रतिकूल परिस्थितियों की संभावना बढ़ सकती है।
ज्योतिषियों का मानना है कि इन ग्रह स्थितियों के कारण कई क्षेत्रों में चुनौतीपूर्ण घटनाएं सामने आ सकती हैं।
भारत पर संभावित प्रभाव
रौद्र संवत्सर भारत के लिए भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। ज्योतिषीय भविष्यवाणियों के अनुसार संभावित प्रभाव इस प्रकार हैं:
राजनीति में बड़े बदलाव और प्रमुख राज्यों में संकट
प्रदूषण में वृद्धि
प्राकृतिक आपदाओं की संभावना
कुछ महीनों में भूकंप या अन्य प्राकृतिक संकट की संभावना
विशेषज्ञ यह भी चेतावनी देते हैं कि वर्ष 2026 में किसी भी अप्रत्याशित परिस्थिति के लिए सतर्क रहने की जरूरत है।
युद्ध और महामारी की चेतावनी
ज्योतिषीय गणनाओं में 2026 में मंगल की स्थिति बड़े युद्ध की स्थिति पैदा कर सकती है, और यदि युद्ध एक बार शुरू हुआ तो वह 2027 तक चलेगा। साथ ही, ग्रह-गोचर संकेत देते हैं कि जून–जुलाई 2026 में किसी महामारी या संक्रमण के रूप में स्वास्थ्य संकट दोबारा उभर सकता है। इन ज्योतिषीय भविष्यवाणियों के अनुसार 2026 कई स्तरों पर चुनौतीपूर्ण हो सकता है, हालांकि वैज्ञानिक दृष्टि से इन दावों की पुष्टि आवश्यक है।






