
टोक्यो, पीटीआइ। पिछले साल कोरोना वायरस के कारण देश में जारी लाकडाउन के चलते सभी प्रकार की खेल गतिविधियां पर ताला पड़ गया था। ऐसे में अभ्यास के लिए मैदान से दूर होने के कारण खिलाड़ियों की काफी नुकसान हो रहा था। इस बुरे दौर में भी फरीदाबाद से आने वाले सिंहराज आधना ने हार नहीं मानी और घर में निशानेबाजी का अभ्यास करने के लिए पत्नी के गहने बेचकर रेंज बनवा डाली। जिसका परिणाम यह रहा कि सिंहराज ने टोक्यो की असाका शूटिंग रेंज पर पी-1 पुरुष 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच-1 में कांस्य पदक जीता।
सिंहराज ने कहा, ‘कोरोना काल में जब अभ्यास नहीं कर पा रहा था तो मैं सोचने लगा था कि पदक जीतने का मेरा सपना खत्म हो चुका है। तब मेरे कोचों ने मुझे घर में रेंज तैयार करने की सलाह दी। मैं बेताब हो रहा था और अभ्यास नहीं कर पाने के कारण मेरी नींद उड़ गई थी। इसलिए मैंने रेंज तैयार करने के लिए अपने परिवार वालों से बात की तो वह सकते में आ गए क्योंकि इसमें लाखों रुपये का खर्च आना था।
तभी मेरी पत्नी के गहने मुझे बेचने पड़े और मेरी मां ने केवल इतना कहा कि सुनिश्चित कर लो कि यदि कुछ गड़बड़ होती है तो हमें दो जून की रोटी मिलती रहे। इसके बाद प्रशिक्षकों, भारतीय पैरालिंपिक समिति और भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ (एनआरएआइ) से मंजूरी और मदद के कारण हम अपने मिशन में कामयाब रहे और जल्द ही अंतरराष्ट्रीय स्तर का रेंज बनकर तैयार हो गया।’
भतीजे की वजह से बने निशानेबाज :
39 वर्षीय सिंहराज के स्वर्गीय बाबा सूबेदार मेजर सुमेरा राम आधना एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जबकि उनके पिता प्रेम सिंह आधना एक किसान और समाजिक कार्यकर्ता हैं। इस तरह पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए सिंहराज भी उनके सामजिक कामों में हाथ बटाने लगे थे। तभी पोलियो से ग्रसित होने के कारण वह काफी बुरी तरह से टूट चुके थे। इस तरह 35 साल के हो चुके सिंहराज का इस खेल से पहला परिचय उनके भतीजे ने कराया था जिनके साथ वह पहली बार निशानेबाजी रेंज पर गए थे।
उन्होंने कहा, ‘मेरा भतीजा गौरव आधना निशानेबाज है। जब वे अभ्यास कर रहे थे तो मैं मुस्करा रहा था तो कोच ने मुझसे इसका कारण पूछा। उस दिन मैंने निशानेबाजी में अपना हाथ आजमाया तथा पांच में से चार सही निशाने लगाए। इनमें परफेक्ट 10 भी शामिल था। इससे कोच भी हैरान था और उन्होंने मुझसे मुझे कहा था की अगर तुम इस पर ध्यान देते हो तो एक दिन देश का नाम रोशन कर सकते हो।’
पदक तक पहुंचने की राह में अपने संघर्षो के बारे में बात करते हुए सिंहराज भावुक हो गए और इस बारे में अपनी भावनाओं को बहुत अधिक व्यक्त नहीं कर पाए। सिंहराज ने कहा, ‘मैं इस पर बाद में बात करूंगा। पैरा खिलाडि़यों की जिंदगी बहुत मुश्किल होती है। मेरे दोनों पांवों में पोलियो है और मैं बैसाखी के सहारे चलता था लेकिन मेरी मां और परिवार के अन्य सदस्यों ने मुझे बिना सहारे के पांवों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किया।’