देश

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला, उम्रकैद की सजा पाए आरोपियों को किया बरी

नई दिल्ली
 सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि मरने से पहले किसी करीबी रिश्तेदार को दिए गए मौखिक बयान को दोषसिद्धि का आधार नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने इस प्रकार के बयानों पर गंभीरता से परीक्षण की जरूरत पर बल देते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी है, जिसमें तीनों आरोपियों को बरी किया गया था।

यह मामला एक अक्टूबर 1996 का है, जब नसीम खान की हत्या के आरोप में रमजान खान, मुसफ खान और हबीब खान को मध्यप्रदेश के सेशन कोर्ट ने दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। मामले में मृतक की मां ने ट्रायल कोर्ट में बयान दिया था कि मरने से पहले उसके बेटे ने आरोपियों के नाम बताए थे, और इसी बयान को ट्रायल कोर्ट ने दोषसिद्धि का आधार बनाया था।

हाईकोर्ट ने निचली कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए सभी आरोपियों को संदेह का लाभ दिया, जिसके बाद मध्यप्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सीटी रविकुमार की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि मरने से पहले दिया गया मौखिक बयान अकेले पुख्ता साक्ष्य नहीं हो सकता, खासकर जब उसमें विरोधाभास हो और अन्य प्रमाण कमजोर हों। कोर्ट ने कहा कि संदेह का लाभ देते हुए आरोपियों को रिहा किया जाना चाहिए।

इस फैसले को कानूनी मामलों में एक नजीर के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें कोर्ट ने साफ कर दिया है कि मृत्यु से पहले दिए गए बयान की विश्वसनीयता और प्रमाणिकता का गहराई से परीक्षण किया जाना चाहिए।

 

 

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button