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18 साल पहले हुआ ‘कैश फॉर क्वेरी’ का वो कांड, जिसमें 11 सांसद नपे थे

नई दिल्ली
 कैश फॉर क्वेरी मामले में टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द हो गई है। लोकसभा की एथिक्स कमिटी ने उनकी सदस्यता खत्म करने की सिफारिश की थी। शुक्रवार को कमिटी की रिपोर्ट पर लोकसभा में चर्चा हुई और संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद पटेल ने टीएमसी सांसद की सदस्यता रद्द करने का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव पास होने के बाद महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द हो गई। सदन में चर्चा के दौरान 2005 के कैश फॉर क्वेरी मामले का भी जिक्र उठा जब लोकसभा के 10 और राज्यसभा के 1 सदस्य को निष्कासित कर दिया गया था।

महुआ मोइत्रा पर उद्योगपति दर्शन हीरानंदानी से महंगे उपहार के एवज में उनकी तरफ से संसद में सवाल पूछने का आरोप है। इतना ही नहीं, उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने संसदीय लॉग इन आईडी और पासवर्ड को भी हीरानंदानी को बता रखा था ताकि वह सीधे सवाल पूछ सकें।

महुआ मोइत्रा मामले में एथिक्स कमिटी की सिफारिश पर लोकसभा में चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस मामले में सरकार की तरफ से 'जल्दबाजी' का आरोप लगाया। इस पर संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने 2005 के कैश फॉर क्वेरी मामले का जिक्र करते हुए कहा कि तब तो 10 सांसदों को बिना उनका पक्ष सुने ही निष्कासित कर दिया गया था। बाद में टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने भी एथिक्स कमिटी की रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान कहा कि महुआ मोइत्रा को भी अपनी बात रखने का मौका दिया जाना चाहिए। वैसे, एथिक्स कमिटी ने मोइत्रा को भी तलब किया था।

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क्या था 2005 का कैश फॉर क्वेरी मामला
2005 में छत्रपाल सिंह लोढ़ा (बीजेपी), अन्ना साहेब एम के पाटिल (बीजेपी), मनोज कुमार (आरजेडी), चंद्र प्रताप सिंह (बीजेपी), राम सेवक सिंह (कांग्रेस), नरेंद्र कुमार कुशवाहा (बीएसपी), प्रदीप गांधी (बीजेपी), सुरेश चंदेल (बीजेपी), लाल चंद्र कोल (बीएसपी), वाईजी महाजन (बीजेपी) और राजा रामपाल (बीएसपी) पर संसद में सवाल उठाने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था.

जब 2005 में 10 लोगों को निष्कासित किया गया था, उसी दिन संसद में रिपोर्ट पेश की गई थी। उस दिन 10 लोगों को अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं दिया गया था। यह रिकॉर्ड में है। जहां तक मैं जानता हूं माननीय सोमनाथ चटर्जी ने उसके ऊपर फैसला दे दिया था।

प्रहलाद जोशी ने 2005 के जिस कैश फॉर क्वेरी केस का जिक्र किया, आखिर वह पूरा मामला था क्या? आइए जानते हैं। तब 11 सांसदों को निष्कासित किया गया था। इतना ही नहीं, उन्हें आपराधिक मुकदमे का भी सामना करना पड़ा। इनमें से 10 लोकसभा के सदस्य थे और एक राज्यसभा के सांसद थे। तब केंद्र में डॉक्टर मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए-1 की सरकार थी।

क्या था 2005 का कैश फॉर क्वेरी केस
12 दिसंबर 2005। एक न्यूज पोर्टल के स्टिंग ऑपरेशन से सियासी भूचाल आ गया। स्टिंग में 11 सांसदों को दिखाया गया कि वे संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे की पेशकश स्वीकार कर रहे थे। इनमें से 6 बीजेपी के थे, 3 बीएसपी के और 1-1 कांग्रेस के सांसद थे। ये सांसद थे- वाई जी महाजन (बीजेपी), छत्रपाल सिंह लोढ़ा (बीजेपी), अन्ना साहेब एमके पाटिल (बीजेपी), मनोज कुमार (आरजेडी), चंद्र प्रताप सिंह (बीजेपी), राम सेवक सिंह (कांग्रेस), नरेंद्र कुमार कुशवाहा (बीएसपी), प्रदीप गांधी (बीजेपी), सुरेश चंदेल (बीजेपी), लाल चंद्र कोल (बीएसपी) और राजा राम पाल (बीएसपी)। स्टिंग में सबसे कम कैश 15000 रुपये की लोढ़ा के सामने पेशकश की गई थी जबकि सबसे ज्यादा कैश 1,10,000 रुपये आरजेडी के सांसद मनोज कुमार को ऑफर की गई थी।

24 दिसंबर 2005 को संसद में वोटिंग के जरिए आरोपी सभी 11 सांसदों को निष्कासित कर दिया गया। लोकसभा में प्रणब मुखर्जी ने 10 सांसदों के निष्कासन का प्रस्ताव रखा था जबकि राज्यसभा में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने एक सांसद को निष्कासित करने का प्रस्ताव रखा था। वोटिंग के दौरान बीजेपी वॉकआउट कर गई थी। पार्टी के सीनियर लीडर और तक्कालीन नेता प्रतिपक्ष एलके आडवाणी ने कहा था कि सांसदों ने जो कुछ किया वह करप्शन कम, मूर्खता ज्यादा है। इसके लिए निष्कासन बहुत ही कठोर सजा होगी।

जनवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सांसदों के निष्कासन के फैसले को सही ठहराया था। उसी साल दिल्ली हाई कोर्ट के निर्देश में दिल्ली पुलिस ने इस मामले में केस भी दर्ज किया था। न्यूज पोर्टल के दो पत्रकारों के खिलाफ भी चार्जशीट दाखिल हुई।

 

KhabarBhoomi Desk-1

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