
काबुल (रायटर्स)। तालिबान ने भले ही अफगानिस्तान के बड़े भाग पर कब्जा कर लिया है लेकिन अब भी एक जगह ऐसी है जहां पर तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है। ये जगह है पंजशीर। पंजशीर में इन दिनों बड़ी कवायद चल रही है। ये कवायद तालिबान को कड़ी चुनौती देने की है, जिसके लिए रणनीति तैयार की जा रही है। इस रणनीति को तैयार करने में देश के पूर्व उपराष्ट्रपति और खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमरुल्ला सालेह, अफगान सरकार के वफादार रहे जनरल अब्दुल रशीद दोस्तम और अता मोहम्मद नूर और नार्दन अलायंस के अहमद मसूद शामिल हैं।
पंजशीर का शेर
अहमद मशूद को पंजशीर का शेर भी कहा जाता है। वो तालिबान के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले अहमद शाह मसूद के बेटे हैं। उन्होंने ही 1990 में तालिबान के खिलाफ पहली बार मोर्चा खोला था। उनकी इस मुहिम में तजाख और तालिबान विरोधी शामिल हुए थे। इसके बाद इनके समर्थकों की संख्या बढ़ती चली गई थी। अहमद शाह मसूद देश के पूर्व रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं। इनके संयुक्त प्रयास की बदौलत ही इन्होंने परवान प्रांत के चारिकार इलाके पर दोबारा कब्जा कर लिया है।
रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम
ये इलाका रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम है। ऐसा इसलिए क्योंकि यही रास्ता काबुल को मजार ए शरीफ से भी जोड़ता है। इसलिए इस पर कब्जे को तालिबान के खिलाफ बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है। इस जीत में सालेह के सैनिकों की भी बराबर की हिस्सेदारी रही है। उन्होंने इस पर कब्जे के लिए पंजीशीर की तरफ से धावा बोला था। आपको बता दें कि ये अफगानिस्तान का अकेला ऐसा प्रांत है जहां पर तालिबान का कब्जा नहीं हो सका है।
ऐसे हुआ इसका नामकरण
पंजशीर के नामकरण की बात करें तो ये काफी दिलचस्प है। दरअसल, इसका अर्थ है पांच शेरों की घाटी। 10वीं शताब्दी में यहां पर गजनी के सुल्तान के लिए एक बांध बनाया गया था। इसको पांच भाइयों ने मिलकर बनाया था। इस बांध से पानी को नियंत्रित करने में बड़ी कामयाबी हासिल हुई थी। तभी से इस घाटी को पंजशीर के नाम से पहचाना जाने लगा। इसके अलावा सालेह का भी जन्म यहीं पर हुआ है। यहीं से उन्होंने अपना सैन्य प्रशिक्षण भी हासिल किया। सालेह ने तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद इस बात की घोषणा भी की थी कि वो किसी भी सूरत में तालिबान के आगे घुटने नहीं टेकेंगे।
रूस का भी विरोध यहीं से हुआ था शुरू
पंजशीर ने केवल तालिबान के खिलाफ ही हथियार नहीं उठाए थे बल्कि 1980 में रूस के वहां आने का भी यहीं से विरोध शुरू हुआ था। पंजशीर घाटी की अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि यहां की भौगोलिक परिस्थितियां इतनी जटिल हैं कि अमेरिकी फौज भी यहां पर आने की हिम्मत नहीं जुटा सकी थीं। ये दरअसल, काबुल के उत्तर में हिंदुकुश क्षेत्र की सबसे दुर्गग घाटी है। ये ऊंचे और नीचे पहाड़ों से घिरी हुई है। बाहरी लोगों के लिए ये घाटी किसी भूलभुलैया से कम नहीं है। यहां की आबादी केवल एक लाख है। ये काबुल से करीब 150 किमी की दूरी पर है।