जयपुर
राजस्थान में सचिन पायलट एक दिन के धरने पर बैठे हुए हैं। वह अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन कर रहे हैं। सचिन पायलट का यह बगावती तेवर तो चर्चा में है ही, साथ ही उनके धरनास्थल पर लगा हुआ बैनर भी चर्चा में आ गया है। असल में इस बैनर पर न तो सोनिया गांधी की तस्वीर है और न ही राहुल गांधी की। इतना ही नहीं, किसी शीर्ष नेता को तो छोड़िए, पार्टी सिंबल तक को इस बैनर पर जगह नहीं दी गई है। बैनर पर सिर्फ महात्मा गांधी की तस्वीर बनी हुई है।
कहीं यह तो नहीं वजह
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ सचिन पायलट का छत्तीस का आंकड़ा तो लंबे समय है। लेकिन ऐन चुनाव से पहले सचिन पायलट इस बागी अंदाज में आ जाएंगे इसका अंदाजा शायद कांग्रेस को भी नहीं रहा होगा। संभवत: यही वजह पार्टी की तरफ से पायलट को चेतावनी भी जारी की गई थी। अनशन से कुछ घंटे पहले कांग्रेस के राज्य प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने पायलट के आंदोलन को पार्टी विरोधी गतिविधि बताया था। वहीं, वरिष्ठ पार्टी नेता जयराम रमेश ने भी गहलोत के पक्ष में ही बयान दिया था। माना जा रहा है कि पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने इसके जरिए पायलट को एक संदेश भी दिया है कि वह अपने बागी रुख से बाज आ जाएं। लेकिन अब पायलट ने जिस अंदाज में अपने बैनर से पार्टी के नेताओं को गायब किया है उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि वह कहीं न कहीं शीर्ष नेतृत्व को इग्नोर कर रहे हैं।
क्या है सचिन पायलट की मांग
सचिन पायलट का कहना है कि उन्होंने सीएम गहलोत से मांग की थी कि वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच होनी चाहिए। पायलट के मुताबिक उन्होंने इस संबंध में 22 मार्च, 2022 को गहलोत को चिट्ठी भी लिखी थी। उन्होंने कहा है कि चुनाव के लिए अब बेहद कम समय बचा हुआ है। अगर राजे कार्यकाल के भ्रष्टाचार की जांच नहीं हुई तो जनता में गलत संदेश जाएगा। लोगों को भ्रम हो सकता है कि हमारी इन लोगों के साथ मिलीभगत है।
गहलोत से छत्तीस का आंकड़ा
बता दें कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के समय यह दोनों के बीच संघर्ष शीर्ष पर पहुंच गया था। उस वक्त अशोक गहलोत का नाम कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सबसे आगे थे। ऐसे में संभावना बन रही थी कि गहलोत राजस्थान में सीएम की पोस्ट से इस्तीफा दे देंगे। अनुमान तो यह भी लग रहे थे कि राजस्थान में नया सीएम पायलट को बना दिया जाएगा। इसके लिए दिल्ली से पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने नेताओं को भी भेजा था, लेकिन मीटिंग से ऐन पहले गहलोत समर्थक मंत्री-विधायकों ने बगावत कर दी थी। माना गया था कि यह बगावत गहलोत की शह पर हुआ था और इसके जरिए पायलट का कद रोकने की कोशिश की गई थी।