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रूस पहले से सहयोगी अब US भी मददगार, कैसे अंतरिक्ष में भी बढ़ी भारत का रफ्तार

अमेरिका
अमेरिका के साथ अंतरिक्ष कार्यक्रम में साझेदारी से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई गति मिलने की संभावना है। भारत इसी साल चंद्रयान-3 लांच करने की तैयारी कर रहा है और अगले साल अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की तैयारियों में है। रूस इन कार्यक्रमों में उसे पहले से सहयोग प्रदान कर रहा है, लेकिन अब अमेरिका से भी सहयोग मिलने से क्षमता में इजाफा होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच गुरुवार को अंतरिक्ष कार्यक्रम को लेकर कई करार हुए हैं। भारत अर्टेमिस करार में शामिल हुआ है, जिसमें 30 देश पहले से हैं तथा इस करार के तहत चंद्रमा तथा अन्य सभी ग्रहों पर एक फ्रेमवर्क की तरह से अनुसंधान कार्यक्रम किए जा सकते हैं। भारत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में भी अमेरिका के साथ भागीदारी करेगा। अमेरिका अंतरिक्ष के लिए भारतीय यात्री को प्रशिक्षित भी करेगा। साथ ही वह नासा के चंद्र मिशन कार्यक्रम में भी हिस्सेदारी करेगा, जिसके तहत 2025 तक चंद्रमा पर मानव भेजा जाना है।

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा अंतरिक्ष विभाग के मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि यह समझौता अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत को ऊंची छलांग लगाएगा। उन्होंने कहा अर्टेमिस समझौते के अनुसार भारत सामान्य प्रोटोकॉल के तहत चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों की खोज के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाले अर्टेमिस कार्यक्रम में भाग ले सकता है।

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अमेरिका के साथ मजबूत भागीदारी
यह समझौता अंतरिक्ष क्षेत्र विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स में महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के आयात पर प्रतिबंधों को आसान बनाने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। इससे भारतीय कंपनियों को अमेरिकी बाजारों के लिए सिस्टम विकसित करने और नवाचार करने में लाभ होगा। यह संयुक्त रूप से ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिक कार्यक्रमों में भारत की भागीदारी की सुविधा प्रदान करेगा।

मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों सहित अन्य गतिविधियों में दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं के लिए सामान्य मानकों तक पहुंच की अनुमति देगा। साथ ही माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक्स, क्वांटम, अंतरिक्ष सुरक्षा आदि सहित अधिक रणनीतिक क्षेत्रों में अमेरिका के साथ मजबूत भागीदारी की अनुमति देगा।

 

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