विदेश

पैसों के लिए बिक गया म्यांमार? चीन को जासूसी के लिए दे रहा ठिकाना; ऐक्शन में भारत सरकार

नई दिल्ली

भारत ने हाल के महीनों में खुफिया जानकारी के साथ म्यांमार के अधिकारियों को तलब किया है। खुफिया जानकारी में दिखाया गया है कि चीन बंगाल की खाड़ी में रिमोट आइलैंड्स पर एक जासूसी चौकी बनाने में म्यांमार की सेना को सहायता प्रदान कर रहा है। विभिन्न स्तरों पर भारत सरकार के प्रतिनिधियों ने म्यांमार के समकक्षों के साथ कुछ सेटेलाइट तस्वीरें भी साझा की हैं। तस्वीरों में चीनी कामगार हिंद महासागर में स्थित कोको द्वीपों पर लिस्निंग पोस्ट (सुनने वाली चौकियां) बनाने में मदद करते दिख रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने सूत्रों से हवाले से लिखा है कि चीनी कामगारों को एक हवाई पट्टी का विस्तार करते हुए भी देखा गया है।

तस्वीरों से ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से 1255 किलोमीटर दूर कोको आइलैंड्स पर दिन-रात काम चल रहा है। बता दें कि ये आइलैंड्स कभी अंडमान निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा थे लेकिन अंग्रेजों ने इसे बर्मा (म्यांमार) को दे दिया था। अब चीन इन्हीं आइलैंड्स के जरिए भारत की जासूसी का प्लान बना रहा है।

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चीनी भागीदारी से म्यांमार का इनकार
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने जब म्यांमार के सामने सबूत पेश किए तो पड़ोसी देश ने आरोपों से इनकार कर दिया। म्यांमार का कहना है कि उसकी जमीन पर किसी दूसरे देश की सेना नहीं है। बैठकों में, म्यांमार की सत्तारूढ़ जुंटा (सेना) के प्रतिनिधियों ने किसी भी चीनी भागीदारी से इनकार किया है। म्यांमार ने भारत की चिंताओं को खारिज कर दिया। हालांकि इसके बावजूद, भारत चिंतित है। ऐसा माना जा रहा है कि इस बुनियादी ढांचे से चीन नौसैनिक ठिकानों के कम्युनिकेशन और मिसाइलों के परीक्षण को ट्रैक कर सकेगा।

जिस तरह के जासूसी उपकरणों की तस्वीर सामने आ रही है उससे ये आशंका बनती है कि वहां से इसरो के लॉन्च साइट श्रीहरिकोटा और डीआरडीओ के लॉन्च साइट चांदीपुर पर भी नजर रखी जा सकती है। म्यांमार की सत्तारूढ़ स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन काउंसिल के प्रवक्ता मेजर जनरल जॉ मिन तुन ने इस आरोप को "बेतुका" बताया। उन्होंने कहा कि म्यांमार कभी भी विदेशी सैनिकों को उसके यहां आने की अनुमति नहीं देगा।

"केवल म्यांमार के सुरक्षा बल मौजूद''
उन्होंने कहा, 'म्यांमार और भारत के बीच हमेशा कई स्तरों पर बातचीत होती है, लेकिन इस मुद्दे पर कोई विशेष चर्चा नहीं हुई। भारत सरकार पहले से ही अच्छी तरह से जानती है कि केवल म्यांमार के सुरक्षा बल वहां मौजूद हैं, और वे अपने देश के लिए रक्षा गतिविधियां कर रहे हैं।" वहीं सवालों के जवाब में, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि देश अपने हितों की रक्षा के लिए "आवश्यक उपाय" करेगा। बागची ने कहा, "सरकार भारत की सुरक्षा को प्रभावित करने वाले सभी घटनाक्रमों पर लगातार नजर रखी जाती है।"

1990 के दशक से ऐसी रिपोर्टें चल रही हैं कि म्यांमार ने द्वीपसमूह पर एक चीनी सिग्नल खुफिया फैसिलिटी की इजाजत दी है। लंदन स्थित पॉलिसी रिसर्च ग्रुप चैथम हाउस द्वारा एक रिपोर्ट जारी करने के बाद पिछले हफ्ते यह मुद्दा फिर से ध्यान में आया कि म्यांमार क्षेत्र में समुद्री निगरानी संचालन करने के इरादे से कोको द्वीपों का सैन्यीकरण कर रहा है।

आकलन लगा रहा भारत
भारत का अपना आकलन है कि ग्रेट कोको द्वीप पर चीन के पास कोई आक्रामक सैन्य क्षमता मौजूद नहीं है। इसके अलावा, हिंद महासागर में जासूसी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चीनी जासूसी जहाजों को भी वहीं डॉक नहीं किया गया है। सूत्रों ने कहा कि कोई भी चीनी कर्मचारी स्थायी रूप से द्वीपों पर तैनात नहीं है, भले ही कर्मचारी वहां उपकरण स्थापित करने में मदद करने के लिए दिखाई देते हैं।

पैसों के लिए बिका म्यांमार?
अधिकारियों ने कहा कि भारत चीन को जासूसी चौकी संचालित करने से रोकने के लिए म्यांमार की सेना पर दबाव जारी रखेगी। अधिकारियों का आकलन है कि म्यांमार सेना के जनरल आर्थिक रूप से बीजिंग पर अधिक निर्भर हो गए हैं क्योंकि 2021 के तख्तापलट के बाद अमेरिका और यूरोप ने कई सख्त प्रतिबंध लगाए हैं

 

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