
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। तकरीबन एक पखवाड़े पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि अफगानिस्तान की सेना काफी सक्षम है और उनकी योजना उन्हें और मदद करने की है। लेकिन उनके बयान के बाद से तालिबान का आक्रमण और तेजी से बढ़ा और किसी भी शहर में अफगानिस्तान की सेना (एएनडीएसएफ) सही तरीके से तालिबान का मुकाबला नहीं कर सकी। काबुल से लौटे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े जानकार बता रहे हैं कि अफगानिस्तान सेना को पिछले कुछ महीनों से अमेरिका व दूसरे पश्चिमी देशों से मदद मिलनी लगभग बंद हो गई थी।
खस्ताहाल माली हालत और गिरा मनोबल भी वजह
कोरोना के बाद अफगानिस्तान की खस्ताहाल माली हालत की वजह से वहां के सुरक्षा बलों व स्थानीय पुलिस को समय से वेतन भी नहीं मिल रहा था। ऐसे में उनका मनोबल काफी गिरा हुआ था। दैनिक जागरण ने इस बारे में काबुल में तैनात भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के कुछ लोगों से बात की। इनका कहना था कि अफगानिस्तान के सुरक्षा बलों को एक आधुनिक व प्रोफेशनल बल बनाने की कोशिश 17-18 वर्ष पहले शुरू की गई थी जो हाल के वर्षों में काफी धीमी पड़ गई थी।
अमेरिकी नेतृत्व पर निर्भरता ने बनाया पंगू
अफगानिस्तान सुरक्षा व सैन्य बलों में उन लोगों को शामिल किया गया था जो पूर्व में तालिबान के बहुत ही क्रूर चेहरे को देख चुके थे। ऐसे में जैसे ही मई, 2021 में राष्ट्रपति बाइडन ने यह एलान किया कि वहां से अमेरिकी सैनिकों की वापसी होगी उनका मनोबल गिर गया। अभी तक अफगानी सेना युद्ध की रणनीतिक जानकारी और दिशानिर्देश के लिए पूरी तरह से अमेरिकी नेतृत्व पर निर्भर थी। यह सूचना भी आई है कि कई सैन्य ठिकानों पर अमेरिकी सैनिकों ने अपने हेलीकाप्टरों आदि को निष्क्रिय कर दिया था।
बिना वेतन के निराशा में डूब गए थे सैनिक
असलियत में वहां रहने वाले हर विदेशी डिप्लोमेट व सुरक्षा विशेषज्ञ यह देख रहा था कि किस तरह से दूर दराज के इलाकों में स्थापित किए गए अफगानी सैन्य पोस्ट एक के बाद एक खाली हो रहे थे। जून, 2021 के महीने में उत्तरी अफगानिस्तान के अधिकांश प्रांतों से सैनिक अपनी नौकरी छोड़ कर जा चुके थे। यह जानकारी भी मिली है कि समय पर वेतन-भत्ते का भुगतान भी नहीं होने से इनमें निराशा का भाव था।
सुरक्षा विशेषज्ञ भी हैरान
साथ ही बीच में अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री के बीमार पड़ने का भी असर पूरे सैन्य बलों के मनोबल पर दिखाई दिया। जानकारों के मुताबिक कई प्रांतों के स्थानीय सरदारों ने भी आतंरिक तौर पर तालिबान से संपर्क कर लिया था और उनकी तरफ से सैन्य बलों को हथियार डालने के लिए दबाव बनाया गया। सनद रहे कि दुनिया के तमाम सुरक्षा विशेषज्ञों इस बात को सुलझाने में जुटे हैं कि आखिरकार कैसे सिर्फ 50 हजार के करीब तालिबान आतंकियों के सामने तीन लाख से ज्यादा अफगानी सैनिकों ने हथियार डाल दिए।
क्या केवल कागजों पर थी सैनिकों की संख्या
सनद रहे कि एक विदेशी मीडिया ने दो दिन पहले ही यह खबर दी है कि तीन लाख सैनिक सिर्फ रजिस्टर में थे। असलियत में सैनिकों की संख्या कम थी और इनके नाम पर वेतन भत्ते सालों से उठाया जा रहा था। सत्ता में भ्रष्टाचार से एएनडीएसएफ पूरी तरह से वाकिफ था और यही वजह है कि जब उन्हें लगा कि राजनीतिक या रणनीतिक नेतृत्व देने वाला कोई नहीं है तो सैन्य बलों का पूरा ढांचा ही चरमरा गया।