जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। चीन की हठधर्मिता से भारत व चीन के बीच रिश्तों में नए सिरे से तनाव फैलने लगा है। पिछले वर्ष विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग ई के बीच बैठक में पूर्वी लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर फैले तनाव को दूर करने के लिए जो सहमति बनी थी अब वह उसे मानने से इनकार कर रहा है। यही नहीं चीन सीमा पर बड़ी संख्या में सैनिक तैनात नहीं करने के लिखित वादे का भी पालन नहीं कर रहा।
नए सिरे से की सैनिकों की तैनाती
एलएसी के कई क्षेत्रों में चीन ने नए सिरे से सैनिकों की तैनाती भी कर दी है और उल्टे मौजूदा तनाव के लिए भारत पर ही दोषारोपण करने लगा है। ऐसे में विवाद निपटाने के लिए जल्द ही दोनो देशों के विदेश मंत्रालयों के अगुआई में होने वाली बैठक को लेकर कोई उम्मीद नजर नहीं आती है। भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने भी चीन के रवैये को लेकर निराशा जताई है और चीन को याद दिलाया है कि वह लिखित वादे पर अमल करे।
मौजूदा स्थिति चुनौतीपूर्ण
एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि चीन की तरफ से लद्दाख स्थित एलएसी पर बड़े पैमाने पर चीनी सैनिकों की तैनाती हुई है। जबकि दोनों देशों के बीच यह समझौता हुआ है कि वे सीमा पर बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती नहीं करेंगे। जयशंकर ने मौजूदा स्थिति को चुनौतीपूर्ण बताते हुए कहा है कि सवाल यह है कि दोनों देश आपसी सामंजस्य व परस्पर सहयोग के आधार पर रिश्ते बना सकते हैं या नहीं।
भारत से बताया खतरा
जयशंकर की इस टिप्पणी के बारे में जब चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान से पूछा गया तो उनका जबाव था कि भारत को चीन के साथ द्विपक्षीय रिश्ते को सीमा विवाद से नहीं जोड़ना चाहिए। उन्होंने चीन की तरफ से पश्चिमी सीमा पर तैनात भारी भरकम तैनाती को एक सामान्य रक्षात्मक व्यवस्था करार देते हुए कहा कि यह तैनाती संबंधित देश की तरफ से चीनी जमीन पर अतिक्रमण के संभावी खतरे को देखते हुए की गई है।
सैनिकों की तैनाती को समस्या की मूल जड़
उन्होंने भारतीय सैनिकों की तैनाती को समस्या की मूल जड़ बताया। जबकि तथ्य यही है कि मई, 2020 में चीनी सैनिकों की तरफ से एलएसी पर दशकों से चली आ रही व्यवस्था का अतिक्रमण करने के बाद ही भारत को रक्षात्मक कदम उठाने पड़े हैं।
वार्ता का नहीं निकला कोई नतीजा
सूत्रों का कहना है कि दोनों देशों के बीच पिछले दो दौर की सैन्य वार्ता और एक दौर की विदेश मंत्रालय के स्तर पर हुई वार्ता का कोई नतीजा नहीं निकला है। नवंबर-दिसंबर, 2020 में एलएसी के कुछ स्थलों से चीनी सैनिकों की वापसी हुई थी लेकिन उसके बाद कोई खास प्रगति नहीं हुई है।
सैनिकों को पीछे करने को तैयार नहीं
चीन हाट स्प्रिंग, गोगरा व देपसांग इलाकों में अपने सैनिकों को पीछे करने को तैयार नहीं है। भारत आधिकारिक तौर पर यह कहता रहा है कि जब तक एलएसी से पूरी तरह से चीनी सैनिकों की वापसी नहीं हो जाती और हालात मई, 2020 से पहले वाले नहीं हो जाते तब तक तनाव नहीं घट सकता।