विदेश

रूस को दबाने के शोर में नाटो के विस्तार पर जोर

अमेरिका

रूस-यूक्रेन युद्ध को एक वर्ष से अधिक का समय हो गया किन्तु दोनों ही पक्ष हार-जीत के बिना अपने अस्तित्व को मिटाने पर तुले हुए हैं। इस युद्ध से यूक्रेन इतना तबाह हो चुका है कि उसे फिर से खड़े होने में 100 वर्षों से अधिक का समय लगेगा। वहीं रूस पर दुनिया भर के देशों ने जो आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए हैं उससे उसकी अर्थव्यवस्था भी टूट गई है। चीन, तुर्की और भारत जैसे राष्ट्रों का आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक समर्थन यदि रूस को नहीं मिलता तो रूस निःसंदेह अब तक युद्ध में टिका न रह पाता। हालांकि संकट अभी टला नहीं है क्योंकि अमेरिका ने संभवतः यह तय कर लिया है कि यूक्रेन के बहाने न सही, फिनलैंड और स्वीडन के चलते वह रूस की ताकत को समाप्त करेगा ही, भले ही इसके लिए उसे दुनिया को ही क्यों न युद्ध में झोंकना पड़े।

 दरअसल, पूरी लड़ाई फिनलैंड को नाटो अर्थात 'नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइनजेशन' में शामिल करना है। अब जल्द ही स्वीडन भी नाटो में शामिल होगा। ऐसे में अमेरिका की अगुवाई वाली नाटो सेनाएं मास्को से मात्र 600 किलोमीटर दूर अपना डेरा जमा लेंगी। अमेरिका की मंशा है ऐसा करके रूस को सदा के लिए दबाया जा सकेगा।

रूस-यूक्रेन युद्ध होने के पीछे भी अमेरिका की यही नीति थी जिसने दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया है। रूस इन दोनों पड़ोसी देशों के नाटो में शामिल होने का विरोध कर रहा है और उसने इसका अंजाम भुगतने की चेतावनी भी दी है जो विश्व बिरादरी को भयभीत कर रही है। दोराहे पर तुर्की भी खड़ा है। इसलिए नाटो सदस्य तुर्की इसके पक्ष में नहीं था कि फिनलैंड को नाटो में शामिल किया जाए। किन्तु अमेरिका के सामने उसकी एक नहीं चली। अब तक तुर्की रूस का साथ दे रहा था क्योंकि यूक्रेन नाटो सदस्य नहीं है। किन्तु यदि फिनलैंड पर रूसी हमला होता है तो तुर्की की सेना को संधि के अनुसार रूस के विरुद्ध युद्ध में उतरना होगा। कुल मिलाकर अमेरिका ने विश्व के सभी समीकरण उलट पुलट कर दिए हैं और एक चिंगारी पूरे विश्व को युद्ध की आग में झोंक देगी।

क्या है नाटो और क्यों हुई इसकी स्थापना? नाटो की स्थापना 4 अप्रैल, 1949 को हुई थी। इसका मुख्यालय बेल्जियम के ब्रसेल्स में है। यह यूरोप और उत्तरी अमेरिकी देशों का एक सैन्य और राजनीतिक गठबंधन है जिसकी जिम्मेदारी है नाटो देशों और उनकी आबादी की रक्षा करना। इस सैन्य समूह की स्थापना अमेरिका समेत 12 देशों ने रूस के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए की थी और ऐसा प्रतीत होता है मानो इतने वर्षों बाद भी इस संगठन का यही उद्देश्य है। फिनलैंड के शामिल होने से नाटो के सदस्य राष्ट्रों की संख्या 31 हो गई है जिनमें 29 यूरोपीय और दो उत्तर अमेरिकी देश हैं।

 नाटो के अनुच्छेद 5 के अनुसार इसके किसी भी सदस्य देश पर हमले को नाटो के सभी देशों पर हमला माना जाता है। 1952 में तुर्की एकमात्र मुस्लिम देश था जो नाटो से जुड़ा। 1955 में जब पश्चिमी जर्मनी को नाटो से जोड़ा गया तो सोवियत संघ-अमेरिका के बीच कोल्ड वॉर बढ़ गया जिसके जवाब में सोवियत संघ को पोलैंड, पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया और बुल्गारिया के साथ वारसा की संधि करना पड़ी जिसका उद्देश्य था यूरोप में नाटो का मुकाबला करना।
 

KhabarBhoomi Desk-1

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