मुंबई।
तमिल एक्ट्रेस सामंथा रुथ प्रभु को नॉर्थ में लोग उनके ‘द फैमिली मैन’ में श्रीलंकाई बागी गुट से ताल्लुक रखने वाली राजी के रोल से जानते हैं। अब वो टिपिकल रोमांटिक फिल्म ‘शकुंतलम’ में नजर आएंगीं। सामंथा असल जीवन में खतरनाक बीमारी मायटोसिस से जूझते हुए कमबैक कर रही हैं। जो इसके डायरेक्टर हैं गुण शेखर गारू वो ये फिल्म लेकर आए थे मेरे पास।
हालांकि उस वक्त मैं इस तरह की फिल्म के लिए तैयार नहीं थी। वह इसलिए कि मैं उन दिनों ‘द फैमिली मैन’ की राजी के एक्शन मोड में थी। कई रियलिस्टिक मोड की फिल्में कर रही थीं। तो मैंने पहले तो शकुंतला को ना कहा। मगर चूंकि मुझे चुनौतियां पसंद रही हैं तो मैंने ना कहने के दो से तीन दिन बाद आॅफर पर दोबारा विचार किया। साथ ही गुणशेखर गारू ने जो इसका वर्ल्ड क्रिएट किया था, वह कमाल का था। मैं बचपन से डिज्नी की फिल्मों की फैन रही हूं। इसमें बचपन के उस सपने को जीने का मौका था।
मुझे किरदार के बॉडी लैंग्वेज पर काम करना पड़ा। वह इसलिए कि शकुंतलम का मतलब ही ग्रेस, पॉज और नजाकत के साथ बातें करने वाली शख्स है। असल में जबकि वह सब मुझ में है ही नहीं। थोड़ी टॉम बॉयिश हूं। तो मुझे गुण शेखर गारू ने उस बॉडी लैंग्वेज की ट्रेनिंग दिलवाई। बाकी गुण शेखर गारू का शकुंतलम को लेकर विजन बहुत क्लियर था। मैं बस उनके विजन को फॉलो करती गई। मैंने हाल ही में पूरी फिल्म देखी है। मुझे उम्मीद है कि दर्शक भी उसे देख गर्व महसूस करेंगे। सच कहूं तो अब भी उससे जूझ रही हूं। हर इंसान की अपनी तकलीफें हैं। वो अपने तरीके से उन्हें हैंडिल करता है। हालांकि वैसे जुझारू लोगों पर योद्धा होने का ठप्पा लगा दिया जाता है। जबकि ऐसा नहीं होता है। ऐसे कई दिन होते हैं, जहां मैं भी रोना चाहती हूं। गिवअप करना चाहती हूं। मगर लोग अमूमन उन्हीं दिनों के बारे में बात नहीं करना चाहते। असल में जबकि उन दिनों की भी चर्चा करना जरूरी हैं। ताकि आम लोगों को समझ में आए कि जो कठिन दिन और जीवन की कठिन लहरें हैं, उनका सामना कर लिया तो अच्छे दिन यकीनन आएंगे। समय कोई भी हो, वह स्थायी नहीं हो सकता। तो इंतजार करें बुरे समय के गुजरने का, और अच्छे के आने का। मैं बड़ी क्लियर थी कि मुझे उस किरदार को जो श्रीलंकाई बागी संगठन से ताल्लुक रखती है- को बड़ा आथेंटिक बनाना होगा।
वह इसलिए कि वह किरदार ढेर सारे लोगों के लिए बेहद संजीदा और मायने रखने वाला है। लिहाजा शूट के दौरान मैं उम्मीद और प्रार्थना करती रही कि मैं उस किरदार के साथ न्याय कर पाऊं। इसके लिए मैंने ढेर सारी डॉक्यूमेंट्री देखी। राजी को मैंने विलेन के नजरिए से नहीं देखा। मैं उसे ऐसे इंसान के तौर पर प्ले कर रही थी, जिनके पास जिंदगी में कई चॉइसेज होते हैं, जिनको चुनकर वो बाकी जीवन किसी मकसद के प्रति समर्पित कर देते हैं। यकीनन वह कई लोगों के लिए विलेन हो सकती है, मगर मैंने राजी को विलेन के तौर पर प्ले नहीं किया। जो चॉइस उसने लिया, वह जरूरी नहीं कि गलत ही हो। तभी ढेर सारे लोग उस किरदार से कनेक्ट कर सके।