
भोपाल, संजय मिश्र। करीब 15 साल के बाद मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी करके 15 माह में ही उसे गंवाने वाली कांग्रेस फिलहाल सबक लेने के लिए तैयार नहीं है। पार्टी में गुटबंदी अब भी कायम है। जमीनी कार्यकर्ता असमंजस में हैं, क्योंकि बड़े नेता ही एक-दूसरे की काट करने में लगे हैं। अभी साल भर पहले ही कद के हिसाब से पद व महत्व न मिलने के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया ने समर्थकों सहित कांग्रेस का हाथ झटककर भाजपा का दामन थाम लिया था। उम्मीद जताई जा रही थी कि इससे पार्टी की रीति-नीति में बदलाव आएगा और उन नेताओं की पूछ होगी जो हाशिये पर हैं, लेकिन एक साल बाद भी ऐसा नहीं हुआ। न तो संगठन में कोई बदलाव आया और न ही बड़े नेताओं के व्यवहार में कोई अंतर। प्रदेश अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष दोनों पदों पर कमल नाथ बने हुए हैं।
संगठन में महत्व न मिलने के कारण कई बड़े नेता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। पार्टी के अंदर गहरा रहा यह अंतर्विरोध पिछले दिनों सामने आ गया, जब पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और खंडवा लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट के प्रबल दावेदार अरुण यादव ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ द्वारा बुलाई गई बैठक से किनारा कर लिया।
यह भी एक तथ्य है कि हाल ही में हुए दमोह विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में कांग्रेस को बड़े अंतर से जीत मिलने के बाद कमल नाथ का मनोबल बढ़ा हुआ है। उन्हें लगता है कि उन्होंने जिस तरह दमोह उपचुनाव को लेकर रणनीति बनाई थी, उसी तर्ज पर खंडवा लोकसभा क्षेत्र एवं पृथ्वीपुर, जोबट और रैगांव विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में भी उनकी रणनीति सफल हो सकती है। इसीलिए वह प्रत्याशी चयन को लेकर निश्चिंतता का प्रदर्शन कर रहे हैं, जिससे पार्टी के अंदर ही अंतíवरोध गहरा रहा है।
खंडवा लोकसभा सीट भाजपा सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के निधन से रिक्त है। कांग्रेस नेता अरुण यादव को हराकर चौहान ने यह सीट जीती थी। यही कारण है कि अरुण खुद को कांग्रेस का स्वाभाविक उम्मीदवार मानकर काफी समय से चुनाव क्षेत्र में सक्रिय हैं। वह मानकर चल रहे हैं कि पार्टी उनके ऊपर ही दांव लगाएगी, लेकिन इसी बीच बुरहानपुर के निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा की कमल नाथ से हुई मुलाकात ने नई चर्चा को जन्म दे दिया। चुनाव की तैयारियों को लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ द्वारा बुलाई बैठक से एक दिन पहले सुरेंद्र सिंह शेरा कमल नाथ से मिलने पहुंचे और खंडवा लोकसभा क्षेत्र से अपनी पत्नी के लिए टिकट की मांग कर दी। इस घटनाक्रम से यादव नाराज हो गए और वे कमल नाथ द्वारा बुलाई गई बैठक में नहीं पहुंचे। चर्चा यह भी होने लगी कि कुछ भाजपा नेताओं ने उनसे संपर्क भी साधा है, जिसका उन्होंने ट्वीट के जरिये खंडन किया और स्वयं को कांग्रेसी बताते हुए दावा किया कि वे सिंधिया नहीं हैं कि स्वार्थ के लिए दल बदल लें। हालांकि यादव को लेकर अब भी कमल नाथ सहज नहीं हैं। इसका संकेत उन्होंने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में हुई एक पत्रकारवार्ता में यह कहकर दिया कि उनसे अरुण ने चुनाव के संबंध में कोई चर्चा नहीं की है।
दरअसल अरुण यादव को लेकर कमल नाथ की अप्रसन्नता को हिंदू महासभा के नेता व नाथूराम गोडसे समर्थक बाबूलाल चौरसिया के कांग्रेस में शामिल होने पर पैदा हुए विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है। कमल नाथ के सरकारी आवास पर चौरसिया को ग्वालियर के कांग्रेस नेताओं ने पार्टी की सदस्यता दिलाई थी। अरुण ने कांग्रेस में उनके प्रवेश का मुखर विरोध किया था। चौरसिया की सदस्यता रद करनी पड़ी थी। बाद में स्थिति सामान्य होने का दावा किया गया था, पर जो घटनाक्रम सामने आया है, उससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि सुरेंद्र सिंह शेरा के माध्यम से कमल नाथ ने अरुण की घेरेबंदी का संदेश दे दिया है।
लोकसभा की खंडवा सीट एवं विधानसभा की पृथ्वीपुर, जोबट और रैगांव सीट के उपचुनाव से भले ही सत्ता के समीकरण प्रभावित न हों पर इससे बनने वाला माहौल कांग्रेस और भाजपा, दोनों के लिए काफी अहम है। कांग्रेस जहां दमोह उपचुनाव की जीत को भुनाना चाहेगी, वहीं भाजपा जीत दर्ज कर अपनी ताकत दिखाना चाहेगी। भाजपा ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहती है, जिससे सत्ता विरोधी माहौल निर्मित हो। यही वजह है कि दोनों दलों ने तैयारियां तेज कर दी हैं। उपचुनाव प्रभारी नियुक्त हो चुके हैं। केवल चुनाव कार्यक्रम और प्रत्याशियों के नाम घोषित होना शेष है।
[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]