नईदिल्ली
मोदी सरकार ने शुक्रवार को चुनावी बॉन्ड की 27वीं किस्त जारी करने को मंजूरी दे दी है. इनकी बिक्री तीन जुलाई से शुरू होगी. यह फैसला राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों से पहले आया है. इन राज्यों में चुनाव की तारीखों की घोषणा दो महीनों में की जा सकती है. वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि बिक्री के 27वें चरण के तहत भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को 29 अधिकृत शाखाओं से 3 से 12 जुलाई तक चुनावी बॉन्ड जारी करने और उसे कैश कराने के लिए अधिकृत किया गया है.
2018 में जारी हुई थी चुनावी बॉन्ड की पहली किस्त
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक चुनावी बॉन्ड की पहली किस्त की बिक्री 1-10 मार्च 2018 को हुई थी. राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए इसकी शुरुआत की गई थी. इसे नकद चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया था. 2 जनवरी, 2018 को तत्कालीन मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अधिसूचित किया था. इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के द्वारा लाए गए थे. यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं.
एसबीआई की ये ब्रान्च कर सकती हैं बिक्री
चुनावी बॉन्ड की बिक्री के लिए एसबीआई की बेंगलुरु, लखनऊ, शिमला, देहरादून, कोलकाता, गुवाहाटी, चेन्नई, पटना, नई दिल्ली, चंडीगढ़, श्रीनगर, गांधीनगर, भोपाल, रायपुर और मुंबई की शाखाएं अधिकृत की गई हैं. एसबीआई चुनावी बॉड जारी करने वाला एकमात्र अधिकृत बैंक है.
चुनावी बॉड जारी होने की तारीख से 15 दिनों के लिए वैध होगा. अगर यह अवधि खत्म हो जाती है तो इसके बाद बॉड जमा करने पर किसी भी राजनीतिक दल को कोई भुगतान नहीं किया जाएगा.
सिर्फ देश में गठित संस्थाएं ही कर सकती हैं खरीद
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक चुनावी बॉन्ड को भारतीय नागरिक और देश में गठित संस्थाएं ही खरीद सकती हैं. ऐसे पंजीकृत राजनीतिक दल, जिन्होंने पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किए हैं, वे चुनावी बांड के जरिए चंदा ले सकते हैं.
बॉन्ड 1000 रुपये, 10000 रुपये, एक लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के गुणकों में जारी किए जाते हैं. ये बॉन्ड नकद में नहीं खरीदे जा सकते और खरीदार को बैंक में केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) फॉर्म जमा करना होता है.
बॉन्ड खरीदने वाले को KYC पूरा करना जरूरी
इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाले व्यक्तियों की पैसे देने वालों के आधार और एकाउंट की डिटेल मिलती है. बॉन्ड में योगदान 'किसी बैंक के अकाउंट पेई चेक या बैंक खाते से इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सिस्टम' के द्वारा ही किया जाता है. इसे खरीदने वाले को पूरी तरह से नो योर कस्टमर्स (केवाईसी) नॉर्म पूरा करना होगा और बैंक खाते के द्वारा भुगतान करना होगा.
चंदा देने वाली की गोपनीयता और राजनीतिक फंडिंग में अपारदर्शिता बनी रहती है. यह सब चुनाव आयोग की जांच के दायरे से भी बाहर है. केवाईसी होने के बाद भी चंदा देने वाले के बारे में सिर्फ बैंक या सरकार को जानकारी हो सकती है, चुनाव आयोग या किसी आम नागरिक को नहीं.
चुनाव आयोग नहीं कर सकता चंदे की जांच
जनप्रतिनिधित्व कानून (RP Act) की धारा 29 सी में बदलाव करते हुए कहा गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के द्वारा हासिल चंदों को चुनाव आयोग की जांच के दायरे से बाहर रखा जाएगा. चुनाव आयोग ने इसे प्रतिगामी कदम बताया है. चुनाव आयोग ने कहा कि इससे यह भी नहीं पता चल पाएगा कि कोई राजनीतिक दल सरकारी कंपनियों से विदेशी स्रोत से चंदा ले रही है या नहीं, जिस पर कि धारा 29 बी के तहत रोक लगाई गई है.