नई दिल्ली
जम्मू कश्मीर में होने वाले ऐतिहासिक जी-20 सम्मेलन पर बाहरी ताकतों द्वारा भारत को नापाक घेरने की कोशिश की जा रही है। पहले चीन ने कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताकर सम्मेलन से खुद को किनारा कर दिया। अब खाड़ी देशों तु्र्की और सऊदी अरब भी सम्मेलन में भाग लेने को कतरा रहे हैं। पीटीआई की रिपोर्ट है कि तुर्की और सऊदी अरब ने अभी तक सम्मेलन में भाग लेने की इच्छा नहीं जताई है। पाकिस्तान पहले ही इस कश्मीर में सम्मेलन के आयोजन को लेकर बखेड़ा खड़ा चुका है। अब चीन और खाड़ी देशों के कदम से साफ है कि बाहरी ताकतें कश्मीर पर राजनीति करने की कोशिश कर रही हैं। चीन के दोगलेपन से तो दुनिया वाकिफ है लेकिन, तुर्की और सऊदी अरब के जी-20 सम्मेलन से खुद को दूर रखने की वजह क्या है, समझते हैं।
जम्मू कश्मीर में होने वाले जी20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की बैठक शुरू होने से तीन दिन पहले तक तुर्की और सऊदी अरब ने पंजीकरण नहीं कराया है। चीन इस मामले में अपनी बात स्पष्ट कर चुका है। बीजिंग से पीटीआई की एक रिपोर्ट में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन के हवाले से कहा गया है: "चीन विवादित क्षेत्र पर किसी भी प्रकार की जी20 बैठक आयोजित करने का दृढ़ता से विरोध करता है … हम ऐसी बैठकों में शामिल नहीं होंगे।" हालांकि तुर्की या सऊदी अरब की ओर से कोई आधिकारिक शब्द नहीं आया लेकिन, उन्होंने अभी तक इस सम्मेलन में भाग लेने को लेकर चुप्पी साधी हुई है। इस बीच केंद्रीय पर्यटन सचिव अरविंद सिंह ने जानकारी दी कि सम्मेलन के लिए पंजीकरण 22 मई किया जा सकेगा।
किन देशों ने किया रजिस्ट्रेशन
जी20 सदस्यों के अलावा अतिथि देशों और कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया गया है। इनमें बांग्लादेश, मिस्र, मॉरीशस, नीदरलैंड, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और यूएई शामिल हैं। अधिकारियों ने कहा कि मिस्र को छोड़कर बाकी सभी देशों ने अपने प्रतिनिधि भेजने के लिए पंजीकरण कराया है। अधिकारियों ने पुष्टि की कि शेष देशों के प्रतिनिधियों ने तीन दिवसीय आयोजन के लिए हस्ताक्षर किए हैं।
कौन-कौन देश हैं जी-20 में
भारत के अलावा, G20 में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल हैं।
तुर्की और सऊदी अरब को क्यो हैं आपत्ति
दरअसल, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन कश्मीर को लेकर कई बार पाकिस्तान का खुलकर समर्थन कर चुके हैं। फरवरी 2020 में पाकिस्तानी संसद में संबोधन के दौरान उन्होंने कहा था कि कश्मीर जितना पाकिस्तान के लिए अहम है, उतना ही अहम तुर्की के लिए भी है। तुर्की ने 2019 में कश्मीर में धारा 370 हटने पर विरोध भी दर्ज किया था। जिस पर भारत ने दो टूक शब्दों में कहा कि वह उसका आंतरिक मामला है। इस मामले में वह किसी बाहरी देश से हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा। उधर, दूसरे खाड़ी देश सऊदी अरब ने इस मामले में भले ही कोई प्रतिक्रिया नही दी थी। लेकिन ऐतिहासिक रूप से देखें तो सऊदी अरब भी पाकिस्तान का हितैषी रहा है।
जी-20 का हिस्सा नहीं है पाकिस्तान
कश्मीर में जी-20 सम्मेलन को लेकर पाकिस्तान पहले ही अपनी आपत्ति जता चुका है लेकिन, उसकी आपत्ति भारत के लिए कोई मायने नहीं रखती। इसके पीछे कारण है- उसका जी-20 का सदस्य न होना। जानकार मानते हैं कि कश्मीर का राग अलापना पाकिस्तान का पुराना पैंतरा रहा है। वह किसी न किसी मौके पर कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करता रहा है। लेकिन, इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर कोई फर्क नहीं पड़ता।
भारत के क्यों अहम है जी-20 सम्मेलन
आगामी दिनों में कश्मीर में होने वाला जी-20 सम्मेलन भारत के लिए काफी अहम है। अगस्त 2019 के बाद से श्रीनगर में जी20 बैठक जम्मू और कश्मीर में पहली बड़ी अंतरराष्ट्रीय घटना होगी। अगस्त 2019 में भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 को समाप्त कर दिया था। साथ ही राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया था।