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अफगानिस्‍तान में तालिबान शासन के लिए चुनौती बने पंजशीर और ISIS-K के लड़ाके, जानें- कलह की बड़ी वजह, घबड़ाया अमेरिका

काबुल, एजेंसी। काबुल में तालिबान के बढ़ते प्रभुत्‍व के बीच यहां के एयरपोर्ट हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट खुरासान (ISIS-K) ने ली है। इस हमले में 13 अमेरिकी सैनिकों समेत 103 लोगों की मौत हुई है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में सक्रिय इस्लामिक स्टेट का क्षेत्रीय गुट ISIS-K लंबे समय से अमेरिकी सैनिकों पर हमले की योजना बना रहा था। ऐसे में अफगानिस्‍तान में तालिबान के प्रभुत्‍व में पंजशीर और ISIS-K के लड़ाके एक बड़ी बाधा उत्‍पन्‍न कर रहे हैं। आइए जानते हैं आखिर तालिबान के शासन में क्‍या हैं बड़ी बाधाएं। ISIS-K के साथ क्‍या है तालिबान के बड़े मतभेद।

2014 में पूर्वी अफगानिस्तान में सक्रिय हुआ यह आतंकी संगठन

यह आतंकी संगठन सबसे पहले 2014 में पूर्वी अफगानिस्तान में सक्रिय हुआ। यह संगठन अपनी क्रूरता के लिए जाना जाता है। इस आतंकी संगठन का नाम नाम उत्तरपूर्वी ईरान, दक्षिणी तुर्कमेनिस्तान और उत्तरी अफगानिस्तान में आने वाले क्षेत्र के नाम पर रखा गया है। इस संगठन में तालिबान के असंतुष्‍ट लड़ाके भी शामिल हैं। दरअसल, इस आतंकी संगठन की ताकत इसलिए बढ़ती गई, क्योंकि तालिबान पश्चिमी देशों और सोच के प्रति नरम होता गया। इसके बाद जब अफगान सेना की मदद से इन असंतुष्‍ट लड़ाकों को बाहर निकाला गया तो ये अफगानिस्‍तान की सीमा पर आ गए और यहीं से संगठन का संचालन करने लगे। पाकिस्तान के सैकड़ों तालिबानी इस संगठन के साथ जुड़े और चरमपंथी हमलों को अंजाम दिया। अमेरिकी खुफिया एजेंसी के मुताबिक इस आतंकी संगठन में अफगानियों समेत दूसरे आतंकी समूहों से पाकिस्तानी और उज्बेकिस्तान के आतंकी शामिल हैं। 

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नंगरहार और कुनार प्रांतों में आतंकी संगठन की अच्छी पहुंच

इस आतंकी संगठन की अफगानिस्तान के नंगरहार और कुनार प्रांतों में इसकी अच्छी पहुंच है। कुछ वर्षों में पूर्वी अफगानिस्तान में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। इस संगठन ने अपने स्लीपर सेल तैनात किए हैं। इस आतंकी संगठन ने वर्ष 2016 से बड़ी संख्या में काबुल और उसके बाहर आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया है। इस संगठन का प्रभाव शुरुआती तौर पर सिर्फ पाकिस्तान से सटे कुछ इलाकों तक सीमित था, लेकिन अब यह जाज्वान और फरयाब समेत उत्तरी प्रांतों में दूसरा प्रमुख गुट बन गया है।

संगठनों के बीच विचारधारा का फर्क

प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि दोनों संगठनों के बीच विचारधारा का फर्क है। उन्‍होंने कहा कि संसाधनों को लेकर भी दोनों के बीच लड़ाई का बड़ा कारण है। पिछले कुछ वर्षों में तालिबान ने अमेरिका के साथ शांति समझौता करने की कोशिशें की हैं। इससे नाखुश लोग तालिबान छोड़कर ज्यादा कट्‌टर इस्लामिक स्टेट से जा मिले। आइएसआइएस के और हक्कानी नेटवर्क के बीच मजबूत कड़ी है। हक्कानी नेटवर्क तालिबान से जुड़ा है। वर्ष 2019 से 2021 के बीच कई प्रमुख हमलों को आइएसआइएस-के और तालिबान के हक्कानी नेटवर्क और पाकिस्तान के दूसरे आतंकी समूहों ने मिलकर अंजाम दिया है।

आइएसआइएस और तालिबान दोनों ही कट्टर सुन्‍नी इस्‍लामिक आतंकी

आइएसआइएस और तालिबान दोनों ही कट्टर सुन्‍नी इस्‍लामिक आतंकी हैं। बावजूद इसके दोनों संगठनों में भारी मतभेद है। आइएसआइएस ने तालिबान पर आरोप लगाया है कि उसने जिहाद और युद्ध का मैदान छोड़कर दोहा और कतर के बड़े होटलों में बैठकर शांति के समझौते किए हैं। खुरासान आतंकी संगठन ने काबुल समेत कई दूसरे शहरों में सिलसिलेवार आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया है। यह हमले सरकार और विदेशी सेनाओं के खिलाफ किए गए हैं। संठगन ने ये सारे हमले खुद को ज्यादा हिंसक और कट्‌टर आतंकी संगठन के तौर पर पेश करने के लिए किए।

तालिबान की पहुंच से दूर है पंजशीर

पंजशीर घाटी काबुल के उत्तर में है। यह घाटी हिंदुकुश पहाड़ियों से घिरी हुई है। इसे लंबे समय से तालिबान विरोधी ताकत के केंद्र के रूप में देखा जाता है। यह घाटी अहमद वली मसूद का गढ़ रही है। वह अहमद शाह मसूद के बेटे हैं। अहमद शाह मसूद की मौत वर्ष 2001 में हुई थी। मरने के पहले तक अहमद शाह मसूद ने पंजशीर घाटी पर दबदबा बनाया हुआ था। उन्होंने सोवियत-अफगान युद्ध और तालिबान के साथ गृह युद्ध के दौरान इसे अभेद्य किला बनाए रखा। तालिबान ने हाल में जब अफगानिस्‍तान के तमाम इलाकों पर कब्जा कर लिया है, लेकिन पंजशीर घाटी अब तक उनके अधिकार में नहीं आई है। तालिबान के खिलाफ विरोध की सबसे मुखर आवाज यहीं से सुनाई दे रहे हैं। पूर्व सरकार में उपराष्ट्रपति रहे अमरुल्ला सालेह और अहमद वली मसूद ने यहीं से तालिबान के खिलाफ बगावत का एलान किया। सालेह अफगानिस्‍तान की खुफिया सेवा के प्रमुख भी रह चुके हैं।

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