नई दिल्ली
सीलबंद लिफाफों पर केंद्र सरकार को फटकार लगा चुके सुप्रीम कोर्ट ने इससे नाराजगी की वजह भी बता दी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ इस तरह के लिफाफों के बड़े आलोचक हैं। उनका कहना है कि सीलबंद कवर कार्यवाही स्वभाविक न्याय और खुले न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। One Rank One Pension (OROP) पर सुनवाई के दौरान मार्च में ही शीर्ष न्यायालय ने सीलबंद लिफाफा स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
मीडियावन चैनल मामले में भी सीलबंद लिफाफों का मुद्दा उठ चुका है। बुधवार को कोर्ट ने कहा, 'कोर्ट की कार्यवाही में अन्य पक्षों के सामने जानकारी खुलासा करने के मामले में सरकार को पूरी छूट नहीं दी जा सकती…। सभी जांच रिपोर्ट्स को गोपनीय नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ये नागरिकों के अधिकार और आजादी को प्रभावित करती हैं।'
कोर्ट ने कहा, 'पब्लिक इम्युनिटी प्रोसीडिंग्स से होने वाले नुकसान से बचने के लिए सीलबंद लिफाफों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। हमारा मत है कि पब्लिक इम्युनिटी प्रोसीडिंग्स जनहित की सुरक्षा के लिए प्रतिबंधात्मक साधन है।' हालांकि, इस दौरान कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि सरकार की तरफ से दाखिल जानकारी को संपादित किया जा सकता है।
क्या है पब्लिक इंटरेस्ट इम्युनिटी (PII)
दरअसल, इसके तहत एक पक्ष जानकारी का खुलासा करने या जांच करने के खिलाफ यह कहकर आपत्ति जता सकता है कि दस्तावेजों को सामने लाना जनहित के लिए नुकसानदायक हो सकता है। उन्होंने कहा, 'संपादित सामग्री को आदेश से कोर्ट के रिकॉर्ड्स में सुरक्षित रूप से रखा जा सकता है, जिसे भविष्य में जरूरत पड़ने पर दोबारा लाया जा सकता है।'
मार्च में क्या हुआ?
OROP बकाया मामले पर सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय की बेंच ने कहा था कि हम इस सीलबंद लिफाफे की प्रक्रिया पर रोक लगाना चाहते हैं। खास बात है कि अडानी-हिंडनबर्ग मामले में भी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सीलबंद लिफाफों पर सवाल उठा दिए थे।