Breaking Newsदेश

अदालतों में लंबित मामलों के भारी बोझ को कम करने के लिए अब शाम में भी लगेंगी अदालतें?, जाने सरकार का क्या प्लान

भुवनेश्वर
देश भर की जिला अदालतों में लंबित मामलों के भारी बोझ को कम करने के लिए केंद्रीय कानून मंत्रालय देश में 785 सायंकालीन अदालतों के काम करने की योजना बना रहा है। योजना के मुताबिक, मौजूदा अदालत परिसरों में ही शाम के समय ये सायंकालीन अदालतें काम करेंगी। इसके अधीन मामूली आपराध के मामले, मामूली संपत्ति विवाद के मामले और चेक विवाद के मामलों समेत ऐसे संक्षिप्त सुनवाई वाले मामले होंगे जिनमें अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है। इस संबंध में विधि मंत्रालय ने एक कॉन्सेप्ट नोट तैयार किया है, जिसे पिछले महीने सभी राज्यों को भेजा गया था। इस नोट में कहा गया है कि ऐसे सायंकालीन अदालतों में पिछले तीन वर्षों के भीतर रिटायर हुए जिला न्यायाधीशों को अनुबंध के आधार पर नियुक्त करने का प्रस्ताव है। इस काम के बदले उन्हें देय भत्तों के साथ-साथ उनके अंतिम वेतन का 50% राशि बतौर पारिश्रमिक मिलेगी।

कब से कब तक काम करेंगी ये अदालतें
नोट में यह भी कहा गया है कि ऐसी सायंकालीन अदालतें सभी कार्य दिवसों में शाम 5 बजे से रात 9 बजे के बीच काम करेंगी। इससे पहले के समय में नियमित अदालतें अपना काम सुचारू रूप से करेंगी। बाद में उन्हीं अदालतों की सुविधाओं का इस्तेमाल सायंकालीन अदालतों के लिए किया जाएगा। प्रस्तावित योजना के तहत, सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीशों और सेवानिवृत्त अदालती कर्मचारियों को तीन साल की अवधि के लिए अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया जाएगा और उन्हें उनके अंतिम वेतन का 50% और लागू महंगाई भत्ता मिलेगा। यदि अन्य सेवानिवृत्त कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं, तो उन पर भी यही नियम लागू होंगे।

किस-किस तरह के मामलों की होगी सुनवाई
प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि प्रस्तावित अदालतें तीन साल से अधिक समय से लंबित वैसे छोटे आपराधिक मामलों की सुनवाई कर सकेंगी, जिसमें तीन साल तक के कारावास के दंड का प्रावधान है। इसके बाद 6 साल तक के कारावास वाले मामले शामिल किए जाएंगे। ओडिशा कानून विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, प्रस्ताव में सीआरपीसी- 1973 की धारा 260, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता- 2024 की धारा 283 के तहत संक्षिप्त सुनवाई और निगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट एक्ट के तहत चेक डिजॉनर के मामले, सार्वजनिक उपद्रव के मामले और मामूली संपत्ति विवाद की सुनवाई इन अदालतों में कराए जाने का प्रावधान है। इसके तहत उन मामलों को लक्षित किया जाएगा जिसमें लंबी सुनवाई की जरूरत नहीं है ताकि जल्द से जल्द बोझ खत्म किया जा सके।"

Related Articles

सरकार का क्या मकसद
अधिकारी ने कहा कि छोटे आपराधिक विवादों पर ध्यान केंद्रित करके, शाम की अदालतों से लंबित मामलों में उल्लेखनीय कमी लाकर सरकार वादियों के बीच निराशा दूर करने और न्यायपालिका में जनता का विश्वास बहाल करने की उम्मीद कर रही है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने कॉन्सेप्ट नोट का अध्ययन किया है। यह योजना गुजरात के सफल मॉडल से प्रेरित है, जहां 2006 में सायंकालीनअदालतें शुरू की गईं थीं और बाद में 2014 में इसके तहत सुबह और शाम की पारिवारिक अदालतों को भी शामिल करते इसका विस्तार किया गया है।

देश में कितने मामले लंबित
बता दें कि देश की अदालतों में लंबित मामलों का अंबार है। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष 21 फरवरी तक कुल 4.60 करोड़ मामले लंबित थे, जिनमें से 1.09 करोड़ सिविल मामले और 3.5 करोड़ आपराधिक मामले थे। इनमें से 44.55% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं। अकेले ओडिशा में, इस वर्ष मार्च के अंत तक जिला न्यायालयों में 14,225 आपराधिक मामले लंबित हैं। इन लंबित मामले का एक प्रमुख कारण न्यायिक अधिकारियों की कमी है।

Show More

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button