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9 साल में PM मोदी ने मजबूत विदेश नीति से लिखी भारत की नई कहानी, दुनिया भर के देश दोस्ती को आतुर

नई दिल्ली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यकाल इस महीने के अंत तक नौ साल पूरे कर रहा है। राजनीतिज्ञों, राजनयिकों, अर्थशास्त्रियों और अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस दौरान उन्होंने भारत को वैश्विक मामलों में एक प्रमुख हितधारक बना दिया है। उनका कहना है कि पीएम मोदी एक मजबूत नेता हैं, जिन्होंने दुनियाभर के कुछ सबसे शक्तिशाली नेताओं के बीच अपनी दमदार छवि बनाई है और सबके बीच अपने दृढ़ आत्मविश्वास का परिचय दिया है। वह एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके कार्यकाल में सबसे अधिक आबादी वाले इस देश से पश्चिम देश मित्रता के लिए आतुर हैं। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति की बदौलत भारत आज एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक शक्ति का केंद्र बन चुका है जो विस्तारवादी चीन का मुकाबला करने की भी ताकत रखता है।

जी20 शेरपा अमिताभ कांत ने कहा, "भारत की विदेश नीति बहुत ही गतिशील है। भारत को ये स्थान हमारी क्षमता, विशेष रूप से प्रधानमंत्री की दूसरे वैश्विक नेताओं के साथ साझेदारी में काम करने की क्षमता के कारण मिली है।" मई 2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने पहला विदेश दौरा अगस्त 2014 में जापान की की। वहां पीएम मोदी ने अपने जापानी समकक्ष शिंजो आबे के साथ तालमेल स्थापित किया। पिछले साल जुलाई में जब उनके दोस्त की हत्या हुई तो पीएम मोदी को गहरा दुख हुआ था। वह अपने दोस्त के राजकीय अंतिम संस्कार में शामिल होने जापान गए थे। भारत के पूर्व राजदूत किशन एस राणा ने कहा, "नरेंद्र मोदी ने एक मास्टर स्ट्रोक से शुरुआत की। वह पहले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसियों और मॉरिशस के नेताओं को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया।" विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि पीएम मोदी भारत की विदेश नीति के एजेंडे को चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं।

जयशंकर ने कहा, "पीएम मोदी के कार्यकाल में अमेरिका के साथ संबंधों ने सबसे बड़ा परिवर्तन देखा है। दशकों से एक-दूसरे को चिंता से देखने वाले दोनों देश-भारत और अमेरिका अब सबसे करीबी रणनीतिक साझेदार हैं। अमेरिका अब भारत को मॉस्को के साथ नई दिल्ली की ऐतिहासिक निकटता के चश्मे से नहीं देखता है और भारत अब इस्लामाबाद के साथ अपने संबंधों के चश्मे से अमेरिका को नहीं देखता है। अमेरिका के निर्णायक रूप से प्रशांत क्षेत्र में अपनी निगाहें स्थानांतरित करने के साथ, भारत एक स्वाभाविक पार्टनर है। इस साझेदारी में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र एकसाथ चल रहा है। नरेंद्र मोदी ने ही इस गठबंधन को साकार किया है।"

जयशंकर ने कहा कि लेकिन अमेरिका से इस संबंध का निर्माण भारत-रूस के ऐतिहासिक संबंधों की कीमत पर नहीं हुआ है, जो यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में आज एक स्पष्ट वास्तविकता है। यूक्रेन के साथ संबंध बरकरार रखते हुए, भारत स्पष्ट रहा है कि उसकी विदेश नीति हमेशा स्वतंत्र रहेगी। इसलिए पीएम मोदी ने रूस के व्लादिमीर पुतिन को साफ कर दिया कि यह युद्ध का समय नहीं है,दूसरी तरफ  पश्चिम की आलोचना के बावजूद रूसी तेल के आयात को मंजूरी दे दी। पूर्व राजनयिक कंवल सिब्बल बताते हैं, "आज अमेरिका हमारा सबसे बड़ा वित्तीय साझेदार है। दोनों देशों के बीच व्यापार अब 162 अरब डॉलर से ज्यादा का है। 20-22 अरब डॉलर का तो हथियारों का ही सौदा है। हमने अमेरिका के साथ सारे बुनियादी समझौतों पर मंजूरी तो दे ही दी है। इनमें से कुछ प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में मंजूर हुए, जो नजदीकी संबंधों का आधार बढ़ाने के लिए हैं। हमने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से चर्चा करके आज सारे मुद्दों पर जीत हासिल कर ली है। प्रधानमंत्री मोदी ने हमारे रिश्तों को एक नया आयाम दिया है।"

भारत इस वर्ष G20 की अध्यक्षता कर रहा है। पीएम मोदी यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने पर आम सहमति बनाने के लिए पश्चिमी देशों, रूस और चीन को एक साथ लाने की कोशिश करेंगे। इन सबके बीच, भारत की सीमा पर स्थिरता और देश के सबसे बड़े भू-रणनीतिक खतरे, चीन से निपटना एक बड़ी चुनौती होगी, जिसके लिए कुशल कूटनीति और मानवीयता की आवश्यकता होगी।

 

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