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यदि सुखी बनना चाहते हो तो पहले दूसरों को सुख देना शुरू करो : साध्वी शुभंकरा


ऋषभदेव जैन मंदिर सदर बाजार में जिनवाणी प्रवचन श्रृंखला
रायपुर : ऋषभदेव मंदिर सदरबाजार के आराधना हाॅल में कर्म मिमांशा सूत्र आधारित जिनवाणी प्रवचन श्रृंखला के अंतर्गत मंगलवार को साध्वीवर्या शुभंकरा ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान में जो हमारी जीवनचर्या है, वह कर्मबंध से युक्त है। कर्म बंध से बचने के साथ ही हमें सबसे पहले अनंत के अनुबंध को समाप्त करना है। क्योंकि अनंत का अनुबंध पाप कर्म का असीमित स्रोत है, इसीलिए अनंत का अनुबंध समाप्त हो जाए, इसका हमें ध्यान रखना ही होगा। यदि खाने की इच्छा है तो पहले दूसरों को प्रेम व प्रसन्नतापूर्वक खिलाना शुरू कर दो। यदि किसी को झुकाने की इच्छा है तो पहले खुद झुकना शुरू कर दो, यदि सुखी बनने की इच्छा रखते हो तो पहले दूसरों को सुख देना चालू कर दो। प्रत्येक शुभ क्रियाको हम प्रसन्नता के साथ करें।
साध्वीवर्या ने आगे कहा कि आज यदि हमें प्रतिकूलता मिली है, शरीर से रूग्ण हैं या अत्यधिक अभाव में जीवन गुजार रहे हैं तो यह सब कुछ जीव ने पूर्व में जो अंतराय बांधा है, उसी का प्रतिफल है। जीवन में मिली प्रतिकूलता-अनुकूलता, सुख-दुख का अनुभव करते हुए भी जीव अपने भूतकाल में किए हुए कर्मों से बचने सचेत-सावधान नहीं रहता। प्रसंगों के आते ही वह अशांत होकर कर्म बांधता ही रहता है। मरने के बाद तो सभी शांत हो जाते हैं, जीते-जी जो शांत हो जाए, जीवन उसी का सफल है। यदि आज सामाजिक, पारिवारिक, शारीरिक, व्यापारिक आदि क्षेत्रों में अनुकूलता नहीं मिल पा रही है तो इसका अर्थ यही है कि जीव ने कहीं न कहीं पूर्व में अशुभ का बंध-अनुबंध किया है। प्रतिकूलता के साथ जीते हुए भी जीव सम्हलता नहीं है, कर्म उदय में है तो भी उससे वह शिक्षा नहीं ले रहा कि अब उसे वैसा कदापि नहीं करना चाहिए। कर्मफल का अनुभव करके भी हम अपने भविष्य के लिए सावधान नहीं होते, यही सबसे बड़ी विडम्बना है। वर्तमान में जो कुछ आपको मिला है वह सब आपके ही कर्मों का प्रतिफल है और आज जो आप कर रहे हैं, उसका वैसा ही प्रतिफल भविष्य में भी अवश्य मिलने वाला है। सर्वज्ञ ज्ञानी भगवंतों के वचनों पर हमें पूर्ण विश्वास कर जीवन जीना है। यदि अशुभ का उदय चल रहा है तब भी अपने मन को स्वस्थ नहीं रख पाए तो इस मानव भव को पाना निरर्थक हो जाएगा। जब प्रतिकूलता को हम अपना ही कर्मफल मानकर मन से स्वीकार कर लेते हैं तो वह प्रतिकूलता बोझ नहीं लगती। प्राप्त परिस्थितियों से जो समझौता कर लेता है, वह उस प्रतिकूलता से भी सहजता से पार हो जाता है।

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